मत्स्य कुंड की मछलियाँ
देख रही हूँ बैठी,
शान्त,स्थिर, चुपचाप,
सामने रखा हुआ शीशे का मत्स्य-कुण्ड
सफेद, काली ,नारंगी ,
छोटी ,मोटी ,नन्हीं
सबल, कोमल
कभी-कभी दुर्बल- निर्बल' सी मछलियां
तैरती रहती हैं जो
इसके बंधे हुए जल में,
रोशनी कभी नीली ,कभी पीली हो जाती है,
मशीन से पानी में ऑक्सीजन घुलाई जाती है
तैरती रहती है
निरुद्देश्य -अविराम
लगता है मानो कर रही हैं,
कितना परिश्रम,अनथक- अविश्रान्त
कभी -कदा एक दूसरे का
मुख- पंख
छूती -चूमती सी
नहीं जानतीं वे कैसी हैं ताल की हिलोरें,
कितना है सागर का विस्तार !
यही मत्स्य-कुंड है
उनका संपूर्ण संसार !
'हम'जो समझते हैं स्वयं को ज्ञानवान
मानो जानते हों सृष्टि के रहस्य,
विधि का समस्त विधान
हमें भी तो ऐसे ही देखता होगा
यदि वह 'सचमुच है' ?तो
सृष्टि का रचयिता ,
परम परमेश्वर ,ईश्वर-भगवान !!
निरुद्देश्य -अविराम
लगता है मानो कर रही हैं,
कितना परिश्रम,अनथक- अविश्रान्त
कभी -कदा एक दूसरे का
मुख- पंख
छूती -चूमती सी
नहीं जानतीं वे कैसी हैं ताल की हिलोरें,
कितना है सागर का विस्तार !
यही मत्स्य-कुंड है
उनका संपूर्ण संसार !
'हम'जो समझते हैं स्वयं को ज्ञानवान
मानो जानते हों सृष्टि के रहस्य,
विधि का समस्त विधान
हमें भी तो ऐसे ही देखता होगा
यदि वह 'सचमुच है' ?तो
सृष्टि का रचयिता ,
परम परमेश्वर ,ईश्वर-भगवान !!
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