Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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अपनी बोली -अपना मान

 

अपनी बोली -अपना मान


यदि करते मान मातृ-भू का
तो हिंदी को मत ठुकराओ,
इस धरती से उपजी है यह
इसे जीवन में भी अपनाओ,

'गुड मॉर्निंग' से क्यों चिपके हो?
क्या 'शुभ -प्रभात' कम सुंदर है?
इसमें लाली है सूरज की
विहगों का सुमधुर कलरव है,

गुड नाइट" में क्या नींद अधिक
वह सुंदर सपने लाती है ?
शुभ-रात्रि' मुझे प्यारी लगती
यह गहरी नींद सुलाती है !

भोजन तो है तन का पोषण
वह सबकी भूख मिटाता है,
लेकिन कहने से 'लंच' 'डिनर'
क्या स्वाद अधिक बढ़ जाता है ?

सोचो तो तनिक गहराई से
भाषा यह कितनी प्यारी है !
यह नटखट है ,यह सौम्य बहुत
हर 'रस' से इसकी यारी है

इसकी माता 'संस्कृत' में तो
है ज्ञानकोष अतुलित भारी
जिसके कुछ अंशों को पाकर
आश्चर्यचकित दुनिया सारी !

अपने महान इस गौरव को
हम क्योंकर भूले जाते हैं!
दासत्व काल की भाषा को
माथे पर ढोए जाते है?

अपनी संस्कृति अपनी भाषा
मन में गौरव उपजाती हैं,
जगती के इस विस्तृत तल पर
'मेरी'पहचान बनाती हैं।।

सरोजिनी पाण्डेय

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