Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बैठी थी कागद-मसि लेकर

 


 लेखनी हाथ में पकड़ी थी,
कुछ गीत -छंद या कविता ही
लिखने की मेरी इच्छा थी,

 मौसम बसंत का प्यारा था
 ना गर्मी थी ना सर्दी थी
 जन्मे थे जिस दिन रामचंद्र
 वह पावन तिथि भी निकट ही थी 

ऐसे शुचि सुखद  काल में तो
 ईश्वर ने मानव जन्म लिया
 मन में उठते भावों को भी
 मिल सकती शब्दों की '"काया"

 पर तभी एक सुंदर तितली
 मेरे अति निकट चली आई
 शायद कुछ कहने को मुझसे 
मेरे कानों से टकराई !

"कविता कैसे लिख पाओगी?
 पहले कविता पढ़ना सीखो!
 मैं प्रभु की सुंदर रचना हूँ ,
पहले तुम तनिक पढ़ो मुझको,"

 तितली की बातें सुनते ही 
मुझ में मानो जागृति आई 
 पढ़ पाने को प्रभु की कविता
 मेरी तो आंखें अकुलाईं,

 उड़ते पक्षी ,गुंजित भ्रमर
 डालों पर खिलते सुमन, सभी
 इन शब्दों से जो लिखी गई 
क्या वह कविता भी पढ़ी कभी ?

आते नभ में जो सूर्य- चंद्र 
वे नियमित गति से आते हैं
 मौसम निश्चित आवर्तन से
 धरती पर छटा दिखाते हैं !

वर्षा की बूंदे पत्तों पर
 छम छम का राग सुनाती हैं
 झरने, नदियां कल -कल ,छल- छल
 प्रभु के ही 'शब्द' कहाते हैं !!

तितली -भंवरे श्रृंगार रसिक
प्लावन-झंझा  तो भयानक है 
भूकंप- तड़ित हैं रौद्र रूप 
भादों की झड़ी शांत रस है 

हर रस की रचना प्रभु करते
 हम मूढ़ उसे ना पढ़ पाते 
जो स्थिर होकर पढ़ते हैं 
सच्चा आनंद वही पाते ,

सरोजिनी पाण्डेय



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