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Dr. Srimati Tara Singh
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बसंत का भ्रमर

 

बसंत का भ्रमर


ओ 'भ्रमर तू था कहाँ

ऋतु शीत की थी जब घनेरी?

ठिठुरते सब ओर प्राणी

थी कहाँ संगीत-भेरी?


शीत भर सोया पड़ा था

ओढ़ चादर तंतुओं की !

था तृषित मन, प्राण व्याकुल

प्रतीक्षा मधुमास की थी!


चाप सुन कर बहु प्रतीक्षित

होगया चेतन त्वरित ही,

काट बंधन, मुक्ति पाई

आस ले प्रिय के मिलन की!


देखकर ऋतुराज चहुँ दिशि

हो उठा आनन्द पूरित

प्यास मेरे हृदय जागी

देख कर नव पुष्प-सुरभित!


आगई प्रिय ऋतु बसंती!

थाल भर उपहार लाई

तृप्त होती प्यास मेरी

शीत भर जो बुझ न पाई!


सरोजिनी पाण्डेय



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