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एक जादुई शै

 

  एक जादुई शै

शब्द ,जो हम शैशव- काल में बोलना सीख जाते हैं,
वे शब्द संसार में कैसे-कैसे कमाल कर जाते हैं !
ये तो वो जादुई शै हैं जो ना जाने कितने रूप धर पाते हैं,

शिशु के कोमल मुख से निकले तोतले शब्द मिश्री बनकर कानों में घुल जाते हैं,

ईर्ष्यालु प्रतिवेशी के अनर्गल -अपशब्द सीसे की भांति कानों में उतर कर
हृदय को बार -बार दग्धकर जाते हैं ,

दो क्रोधी जनों के बीच बोले जाने वाले अनेक शब्द कभी घी और कभी शीतल जल की धार बनकर उनकी क्रोधाग्नि को कभी भड़काते ,कभी बुझाते हैं,

राजनैतिक दलों की आपसी कहासुनी में
कभी गोबर- कीचड़ या अंडे- टमाटर की तरह शब्द ही विपक्षी दल पर उछाले -मारे जाते हैं,

शत्रुता यदि हो गई कभी किसी अपने से ही
तो शब्द ही ,छुरी- कटारी और दुधारी बनाए जाते हैं ,

देवर-भौजाई, जीजा -साली के बीच
नोकझोंक का नाम पाकर ये कभी चटपटी चाट ,कभी मक्खन- मलाई कहलाते हैं,

कितने रूप और अभी इनके गिनाऊँ मैं ,
कभी कलई, कभी सुई बनकर ये
लोगों के चरित्र छुपाते या उधेड़ते चले जाते हैं,

दिल की तराजू पर तोलकर जो बोले जाते
वे शब्द तो विश्व विजेता बन जाते हैं।

शब्द तो वो जादुई शै हैं जो ना जाने कितने रूप धर पाते हैं।

सरोजिनी पाण्डेय्

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