जीवन का सत्य
बंधन से ही जीवन संभव
निर्बंध न जीवन हो सकता
यदि बंधें नअण्ड औ' बीज कभी
क्या शिशु का जन्म कभी होगा?
अक्षर -अक्षर मिलते हैं जब
तक तो बनता है शब्द एक,
शब्दों से मिल भाषा बनती
भाषा करती दो हृदय एक
बंधन यदि होता है स्वैच्छिक
आत्मा को गौरव देता है,
दूजे का दिया गया बंधन
आनंद हृदय का हनता है,
अपने मन की ले थाहअगर
हमने जीवन का मार्ग चुना,
तो सीधा -सादा जीवन भी
सुख देता है नित-नित दूना!!
होता है मन अतिशय चंचल
वह नित परिवर्तित होता है,
जो आज नयन का तारा है
किरकिरी वही बन सकता है!!
सुख -दुख तो अपने भीतर है
उसको औरों से क्या पाना !
पर याद सदा यह रखना है
अति दुस्तर मन को समझ पाना!!!
सरोजिनी पाण्डेय्
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY