क्या होता??
कभी यूं ही बैठे बैठे मैं सोचती हूँ,
शब्दों की महिमा मन ही मन गुनती हूँ,
उनींदे शिशु को जब मां थपकी दे सुलाती
शब्दों के अभाव में उसे लोरी कैसे सुनाती?
स्नेह और ममत्व तो दे देती अपने स्पर्श और चुंबन से
पर लोरी के बिना उन्हें परीलोक कैसे पहुंचाती?
गुरु के आश्रम में शिष्य सीख लेते आचार- व्यवहार
शब्दों के बिना वे मंत्र कैसे पाते ?
कैसे गुंजरित होता आश्रम मंत्रोच्चार से! मार्गदर्शक वेदों को हम कैसे पाते?
शब्द न होते तो कैसे बनते भजन- कीर्तन
ईश्वर तक अपना निवेदन हम कैसे पहुंचाते?
निकट होने पर प्रेमी नैन -सैन से करते बतियां दूर होने पर प्रेमपत्र तो कतई न लिख पाते!!
क्रोधित होने पर लड़ लेते लात -घूंसे चला गालियों के बिन मन की भड़ास कैसे निकालते!!!
विरह की वेदना तो हो जाती प्रकट आहोंसे
पर कालिदास मेघदूतम् तो न लिख पाते !
शब्द ही न होते तो कैसे बनती भाषा ?
भिन्न भाषा -भाषी फिर कैसे टकराते ??
होती न भाषाएं तो क्या युद्ध भी न होते !
वसुधा के सारे प्राणी क्या एक बड़ा कुटुंब हो पाते ??
क्या होता यदि शब्द ही न होते??
कभी मन ही मन मैं यूं ही गुनती हूँ,
शब्दों की महिमा के बारे में सोचती हूँ।
सरोजिनी पाण्डेय्
26/4/21
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