Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मनकी उलझन

 

*मनकी उलझन,--द्विविधा युवा मन की

ओ मेरे मन पाखी मत देख ऊंची उड़नों के दिवा स्वप्न!!

मानती हूँआकाश अभी नीलम सा नीला है,

गुनगुनाती पवन का बुलावा बड़ा रसीला है,

डैनोंमें शक्ति है ऊंची उड़ान भरने की,

आँखों में प्यास है सारे जग को निरखने की,


पर ओ प्यारे पाखी!रुक!,तनिक सोच ले,

पैरों में बंध चुकी हैं पायलें रिवाजों की!

पायलें है स्वर्णमयी,रत्नों से जड़ी हुई

घुंघरू बज उठते हैं,स्वर लहरी रूनझुन की


सुन रे मनके पाखी! ,सोच ले,समझ ले,थोड़ीदेर गुनले,करले तुलना तनिक ,चाह और रिवाजों की,

ऊंचा उड़ेगा तो रहेगा अकेला तू,नाचा यदि लय पर तो जुटेगी भीड़ रसिकों की,


तालियां बजेंगी और होगा स्तुति गान,लेकिन प्यास अनबुझी रहेगी तेरे मन की!

उलझन यह भारी है तुझको सुलझानी है

सीखेगा नर्तन या राह पकड़ेगा ऊँची उड़ान की?!?!


सरोजिनी पाण्डेय्



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