अंतर्राष्ट्रीय साइकिल दिवस पर विशेष
एक याद
अंतर्राष्ट्रीय साइकिल दिवस पर
बात पुरानी याद आई ,
थी वयस् अभी एक बाला की
पर दुल्हन बन पतिगृह आई
• * * *
पति में भी अभी लड़कपन था
हर बात में शान दिखाते थे
अपने विशेष कौशल की भी
वह मुझ पर धाक जमाते थे,
• * * * *
घर में स्कूटर ,-कार न थे
हम पैदल आते -जाते थे
आवश्यकता ही यदि आन पड़े
जन -वाहन साथ निभाते थे,
• * *
था बड़ा रंगीला वह मौसम
और दिन भी बड़ा सुहाना था ,
कुछ उदे बादल थे नभ में
और पवन बड़ा मस्ताना था
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"आओ तुम भी बाहर निकलो
कुछ दूर घूम कर आते हैं
अपनी इस प्यारी साइकिल की
हम तुमको सैर कराते हैं""
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मौसम पहले ही मोहक था
उस पर पति का आमंत्रण भी
यह अवसर कैसे छोड़ूं मैं ,
मैं भी तो आखिर कमसिन थी !
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कुछ बन ठन कर ,कुछ सजी-धजी
कर कर ली तैयारी जाने की,
तन में फुर्ती, मन में उम़ग
सैंडल थी ऊंची एड़ी की
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जब लगी बैठने कैरियर पर
पति का रोमांस उभर आया ,
ख़ालिस फिल्मी स्टाइल में
अगले डंडे पर बिठलाया,
* * * *
कुछ दूर चले ,दो बातें की
कुछ हंसे और कुछ सकुचाए
हम नए बने दो साथी थे
एक दूजे में ही भरमाय !
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बस ध्यान हट गया साइकिल से
संतुलन थोड़ा बिगड़ गया
सैंडल के साथ पैर मेरा
पाहिए के भीतर चला गया
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साइकिल गिर गई सड़क पर ही
हम दोनों नीचे दबे हुए
मेरी कोहनी, उनका घुटना ,
दोनों छीलकर बेहाल हुए
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मैं घुटना -कोहनी भूल गई
आंखें भर आई आंसू से
मेरी वह नई -नई सेंडल
बदहाल हो गई साइकिल से!
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वह पहली सैर साइकिल की
मुझको थोड़ा -सा रुला गई
पर यादों में ताज़ा है वह
जैसे घटना हो अभी हुई।।।
सरोजिनी पाण्डेय्
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