हवाई यात्रा में यादों की उड़ान
उस दिन मैं और मेरे पति बिटिया के पास जाने के लिए दिल्ली से बंगलुरु की विमान -यात्रा कर रहे थे, सभी कुछ सामान्य रूप से संचालित हो रहा था। लगभग आधी यात्रा होने को आई, तब घोषणा हुई कि बाहर मौसम खराब है ,इसलिए हम अपनी सीट बेल्ट बांध लें।मैं खिड़की के निकट वाली सीट पर थी अतः उत्सुकतावश
बाहर देखा, ओह !हम तो सफेद हल्के बादलों के ऊपर से चलते चले जा रहे थे !
करोना महामारी के कारण पिछले लगभग डेढ़ वर्ष से घर के अंदर रहते -रहते ऐसा लगता था कल्पना शक्ति भी कुंठित हो गई है। अब यहां सहसा अपने को बादलों के ऊपर पा मन को मानो पंख मिल गए ,याद आ गए वे दिन जब मैं छोटी बच्ची थी। छोटे -से पहाड़ी शहर में रहती थी ।वर्षा के बाद जब बादल नीचे की घाटी में भर जाते तो सोचती थी ,काश !मैं एक परी होती तो इन सफेद बादलों के ऊपर हल्के पावों दौड़ती और थक जाने पर पंख फैलाकर उड़ जाती !आज वही बादल थे ,वही मैं थी और मेरे लगे थे यांत्रिक पंख !आज थी न मैं सचमुच एक 'परी'!!
कल्पना की दिशा बदल जाती है ,दही बिलोकर मक्खन निकालती हुई मां की याद आती है, दुध- हंड़िया में जब मां की मथानी तेजी से घूमती थी ,तो ऐसे ही तो सफेद, धवल ,कोमल झाग से सारी सतह भर जाती थी और एक बालिका अपलक उस दृश्य को घुटनों पर ठोडी टिकाए देखती रह जाती थी ।लालच थोड़ा माखन पालेने का भी रहता था।।
यादों का क्या है ,वे तो छिन -छिन रूप और दिशा बदलती हैं।याद आता है मुझे वह समय जब सर्दी शुरू होने के पहले गद्दे और रजाइयों की रूई धुनवाकर उन्हें फिर से भरवाया जाता था ।गलियों में धुनियाँ अपने धनुष को टंकारता हुआ ,'गद्दे रजाई भरवालों" " रुई धुनवा लो"की आवाज लगाता था ।यह जो बादल विमान के नीचे तैर रहे हैं ,ऐसी ही तो होती थी वह सफेद हल्की ,रेशा- रेशा हुई रजाई में भरे जाने को तैयार, समेट का हवा की गर्मी अपने रेशों में ,देने को हमें सर्दी में गर्माहट।
विमान की गति के साथ मन भी उड़ान भरता रहा ।मुझे याद आया पुराणों का कथन -भगवान विष्णु तो क्षीरसागर में सोते हैं ,क्षीर अर्थात दूध ,यह बादलों से भरी धरती, हां !यह धरती ही तो है ,जो विमान -यात्रियों के पैरों तले है ,तो क्या ऐसा ही होगा क्षीरसागर ?स्वच्छ, धवल ,निर्मल ,उद्वेलित ,तरंगित ,जिसमें शेष- शैया पर शयन करते हैं विष्णु ,!जिनकी नाभि से निकले कमल पर बैठे ब्रह्मा ने रचना की सृष्टि की ?अभी मैं पौराणिक कथाओं के मायावी संसार में डूब उतरा ही रही थी कि पायलट की आवाज से "हम बंगलुरु के ऊपर उड़ान भर रहे हैं आप अपनी कुर्सी सीधी करे लेंऔर - - - -""
मैं लौट आई उस कल्पनालोक से इस वास्तविक जगत में।।
सरोजिनी पाण्डेय्
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