एक प्रार्थना
हो जाएं तीन लोक आनंद से पूरित ऐसा एक स्वर
मुझे गुनगुनाने दे !
गा सकूं जो गीत तेरे, सुर
मुझे सजाने दे !
शुभ्र वेणी शीश धरे ये नीली सिन्धूर्मियां,
वन्य पुष्पों से सजी ये हरित पगडंडियां ,
यात्रा यह अति मोहक मुझे भी कर आने दे !
गा सकूं जो गीत तेरे सुर मुझे सजाने दे !
पंख फुला कर मयूर नाचते हैं उषा- द्वार
झरने भी झूम झूम बजा रहे हैं सितार,
दरस इस छवि का मुझे भी करने दे !
गा सकूं जो गीत तेरे सुर मुझे सजाने दे !,
निशा के अंतिम प्रहर,मंद हुए तारकगण
प्रीति -गंध से भरी बहती यह मंद पवन,
नेह भरी चंद्रिका में मुझे भी नहाने दे !
गा सकूं जो गीत तेरे सुर मुझे सजाने दे !
एक एक नखत में बाती- सी जलती है
भोर को महकाने को कलिकाएं खिलती हैं ,
पूर्णचंद्र जैसे स्वर मुझे भी लगाने दे रे
गा सकूं जो गीत तेरे ,सुर मुझे सजाने दे ।।
हो जाएं तीन लोक आनंद से पूरित ऐसा एक स्वर
मुझे गुनगुनाने दे !
गा सकूं जो गीत तेरे, सुर
मुझे सजाने दे !
शुभ्र वेणी शीश धरे ये नीली सिन्धूर्मियां,
वन्य पुष्पों से सजी ये हरित पगडंडियां ,
यात्रा यह अति मोहक मुझे भी कर आने दे !
गा सकूं जो गीत तेरे सुर मुझे सजाने दे !
पंख फुला कर मयूर नाचते हैं उषा- द्वार
झरने भी झूम झूम बजा रहे हैं सितार,
दरस इस छवि का मुझे भी करने दे !
गा सकूं जो गीत तेरे सुर मुझे सजाने दे !,
निशा के अंतिम प्रहर,मंद हुए तारकगण
प्रीति -गंध से भरी बहती यह मंद पवन,
नेह भरी चंद्रिका में मुझे भी नहाने दे !
गा सकूं जो गीत तेरे सुर मुझे सजाने दे !
एक एक नखत में बाती- सी जलती है
भोर को महकाने को कलिकाएं खिलती हैं ,
पूर्णचंद्र जैसे स्वर मुझे भी लगाने दे रे
गा सकूं जो गीत तेरे ,सुर मुझे सजाने दे ।।
सरोजिनी पाण्डेय्
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