Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बूँद हूँ छोटी

 

"बूँद हूँ छोटी"मैं पानी की बूँद हूँ छोटी,मैं तेरी प्यास बुझाऊँ।पी लेगा
यदि तू मुझको ,मैं तुझको तृप्त कराऊँ।मैं छोटी सी बूँद हूँ,फ़िर क्यों न
पहचाने?तू जाने न सही मग़र,किस्मत मेरी ऊपर वाला जाने।मैं पानी की बूँद
हूँ छोटी,फ़िर क्यों खोटी मुझको माने?भटकता फ़िर रहा है तू,और क्यों अनजान
है तू?तेरी महिमा मैं तो समझूँ न,जाने तो ऊपर वाला जाने।मैं पानी की
तुच्छ बूँद हूँ,फ़िर मेरी महत्ता क्यों न जाने?ज़ीवन रूपी इस पथ पर ,तुझे
अकेले चलने है।मैं भी चलूँ तेरे साथ -साथ,और मुझे क्या करना है?तू पी
अपनी प्यास बुझा,हमें ग़म नहीं है कुछ भी।काम ही मेरा और क्या है ?,केवल
मुझे सिमट कर चलना है।अस्तित्व ही यह मेरा है,मुझे तुझमें रह जाना है।मैं
पानी की बूँद हूँ छोटी,फ़िर हालातों को क्यों न तुम पहचानो।तेरे सहारा
मुझसे है,और मेरा सहारा तुझसे।तू तो मुझ पर आश्रित है,और सब मेरे
दीवाने।तू मर जाएगा मेरे बिन ,फ़िर क्यों न मुझको पहचाने?मैं पानी की बूँद
हूँ छोटी,फ़िर क्यों तुम व्यर्थ बितराओ?बूँद -बूँद से घड़ा भरा है,क्यों
तुम ऐसा न कर पाओ?यदि रखोगे सुरक्षित तुम मुझको,मैं तो सागर बन जाऊँ।अग़र
करोगे न तुम ऐसा,तो मैं तुच्छ बूँद भी न रह पाऊँ।मैं पानी की बूँद हूँ
छोटी,मैं तेरी प्यास बुझाऊँ।

 

 

 

सर्वेश कुमार मारुत

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