Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

कैसा खेल यह तूने खेला है

 

कैसा खेल यह तूने खेला है?
लगा दिया यहाँ रेला है।
छायी हर तरफ उदासी है,
और लगा दिया तूने मेला है।
हम आँखों में उम्मीद लगाये,
ढूँढे ऐसा स्वच्छ बसेरा है।
हम सहम रहे मन में हो पाये या न हो पाये,
न जाने वह कैसा अगला सवेरा है?
कैसा खेल यह तूने खेला है?
लगा दिया यहाँ रेला है।
जख़्म दिया ऐसा हमको,
न जाने छिपा हुआ कौन सा चेहरा है?
वह खाक करने को लगा रहे,
न जाने वह कैसा फेरा है?
हम भी कम नहीं तुमसे,
मातृभूमि की रक्षा करने बाँधा सिर पर कफ़न का
सेरा है।
कैसा खेल यह तूने खेला है?
लगा दिया यहाँ रेला है।
हम एक एक डगर चलेँ,
फिर किस तरह तुम्हें बिखेरा है?
हमारे भी हृदय जागे और जाग उठा,
उत्साह और हिम्मत से हिल गया अब ये तन मेरा है।
तुम्हें बहुत देख अब हमने भी,
भरी हृदय में आग और बारूद का गोला है।
कैसा खेल यह तूने खेला है?
लगा दिया यहाँ रेला है।
तुमने खेल यह ऐसा खेला है,
इसीलिए उठाया हमने भी कदम अब टेढ़ा है।
पर मिला हुआ अपना ही कोई,
वह चेहरा एक रूपहला है।
हमने भस्म रमाई है थोड़ी,
वह बन चला अभिमन्यु देख अकेला है।
कैसा खेल यह तूने खेला है?
लगा दिया यहाँ रेला है।
तुम क्यों करते हो फिर ऐसा?
तुम्हारा भी तो कोई देश और बसेरा है।
तुम्हें भटकाया जिन लोगों ने है,
वह खून न तेरा और मेरा है।
तुम जिनकी ख़ातिर लड़ते हो,
कर देगा वह बुरा अंत भी तेरा है।
कैसा खेल यह तूने खेला है?
लगा दिया यहाँ रेला है।
तुझे नाग बनाया है जिसने और नचलाये तुझको,
न जाने कौन वह सपेरा है?
तुझे भूत लगा है क्यों ऐसा?
एक दिन हो जायेगा बुरा अंत तेरा समय बड़ा अलवेला
है।
कैसा खेल यह तूने खेला है?
अब रुक जा, अंत करने का मौका मेरा है।

 

 


सर्वेश कुमार मारुत

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ