Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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क्यों चली जिंदगी ?

 

क्यों चली यह जिंदगी?, पर रुकती
नहीं ना जाने क्यों ?
क्यों जन्में हैं यहाँ ?
पर मरे यहाँ ना जाने क्यों?
क्यों शिशु रोता ऐसे था?,
पर हँस पड़ा ना जाने क्यों ?
क्यों शिशु को छुआ ऐसे था?
वह घुटवनों चल पड़ा ना जाने क्यों ?
क्यों था नटखट बालवीर इतना?
उसकी शरारतों से परेशान हैं सब जन ना क्यों ?
क्यों ना माने बात को?
निखट्टू पूछता है क्यों , क्यों ?,क्यों ?
क्यों,क्यों ,क्यों करता ही रहा,
पर उसके मुख से निकले क्यों ना जाने क्यों ?
क्यों जिज्ञासित हुआ है ऐसे बैठा?,
क्यों ,यह प्रश्न पूछे ऐसे ना जाने क्यों?
क्यों खाते पीते हैँ हम सभी?
और खाते पीते हैं लोग अपने मुख से ऐसे क्यों ?
क्यों है धर्म,जाति अलग ?
पर खून एक सा है यह क्यों ?
क्यों है वेशभूषा अलग?
पर जिस्म एक सा है यह क्यों ?
क्यों रंग रूप है अलग?
पर त्वचा एक सी है यह क्यों ?
क्यों वाणी लिपि हैं अलग?
पर जिह्वा एक सी है यह ना जाने क्यों ?
क्यों खान पान है अलग?
पर अन्न एक सा है यह क्यों ?
क्यों गरीब हैं लोग यहाँ पर?
पर अमीर बना वह कैसे और क्यों ?
क्यों गरीबों अमीरों की
जिन्दगी विरल सी?,
पर मौत एक सी है ना जाने क्यों ?
क्यों होता व्यक्ति को सम्पत्ति पर घमण्ड?
क्यों ले जाए साथ ना जाने क्यों?
क्यों अनजान हैं हम उससे?
पर शक्ति ना हम जान पाए ना जाने क्यों?
क्यों सताती सर्दी गर्मी सबको?
ये मौसम ऐसा ना जाने क्यों?
क्यों मौसम ऐसा है?
सूखे ठुठरे सारे हम ना जाने क्यों?
क्यों संसार पड़ा अद्भुत?
इसके कायल हो गये ना जाने क्यों?
क्यों ना जाने दुःख उनका,
पर सुख मिल पाये ना जाने क्यों?
क्यों जीवन विचित्र बड़ा?
पर समझे अब तक ना जाने क्यों?
क्यों वे हम को छोड़ चले ऐसे?
पर उन पर रोएँ चिल्लाएँ ना जाने क्यों?
क्यों आया था रोता चिल्लाता?
पर गुजर चला चुपचाप ना जाने क्यों?
क्यों क्यों क्यों चलता ही रहा?
पर समझ पाये ना मतलब इसका ना जाने क्यों?
क्यों वह इतना लिखता या पढ़ता ही गया?
पर लिखने या पढ़ने वाला ना जाने क्यों?

 

 


सर्वेश कुमार मारुत

 

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