Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मैं पत्थर की मूरत हूँ !

 

 

मैं पत्थर की मूरत हूँ!
फिर क्यों मुझे बुलवाते हो?
तुमने क्या कहा मैंने क्या सुना?,
हम तो अनभिज्ञ है इससे।
ना तो पत्थर बोले- ना ही बोले मूरत,
फिर पत्थर मूरत क्या
बोले?
तुम तो अनजान हो इससे,
सच्चाई का पता नहीं।
तूने इसे तराशा था,तूने इसे बनाया था ।
तूने मुझे तुच्छ लकीरों से सजाया था।।
मूरत हूँ- मूरत हूँ मैं तो,
मैं तो जिसकी छाया हूँ।
महसूस करो,स्पर्श करो,
तब मैं दृष्टिगत होता हूँ।
तुम जाओगे पर मैं ना जाऊँ,
मैं ही पिछले की याद दिलाऊँ।
आधा तुम हो- आधा मैं हूँ,
मैं हूँ आधा- मैं हूँ आधा।
अनजान सही- अनजान सही ,
मैं पत्थर की मूरत हूँ!
चले चलो- चले चलो।
बढ़ सकते हो बढ़ते चलो।
दिखला दूँगा मैं सबको,
बीता हुआ मैं कल को।
मैं बोल नहीं सकता,
लेकिन तुम देखकर शायद समझ पाओ।
मैं पत्थर की मूरत हूँ,
तुम इसको और बढ़ाओ।
मैं पत्थर हूँ – मैं हूँ पत्थर,
तुम मुझको और सजाओ।
तुम सजाओगे तो खुशी होगी मुझको,
और आगे चलकर गीत तुम्हारे गाऊँ।
मैं पत्थर की मूरत हूँ!
कुछ पूजे व्यर्थ ही मुझको,
मुझमें आखिर ऐसा है क्या?
तृप्त करे वो तृप्त करे वो,
और दिखाते मुझे दया।
मैं पत्थर की मूरत हूँ!
मैं पत्थर- पत्थर मैं हूँ,
मैं बदसूरत काला भूरा हूँ।
जिसने दिया रूप है इसको,
मैं हीरा या वह हीरा है।
मैं पत्थर की मूरत हूँ!
कहाँ है पत्थर ?- कहाँ है पत्थर?
गया कहाँ वो – कहाँ गया वो?
जिसके बिना मैं अधूरा हूँ।
लाओ पत्थर- पत्थर लाओ,
थोड़ी इसमें जिज्ञासा दिखलाओ।
मैं पत्थर की मूरत हूँ!
दिखलाते हो तो दिखलाऊँगा,
तुम ना सही मैं बतलाऊँगा।
टूटूँ मैं ही तो दर्द भी मुझको,
तू फिर क्यों कतराता है।
तू तराश तराशता जा ,
मैं तो तेरे साथ हूँ।
मैं पत्थर की मूरत हूँ!
नाम मिलेगा नाम मिलेगा,
नहीं नहीं तुझे वरदान मिलेगा।
चलते चलते आते जाते कुछ इससे,
कुछ ना कुछ तो पायेँगे।
शायद वह मेरी तथा तेरी ,
कुछ ना कुछ तो गायेंगे।
मैं पत्थर की मूरत हूँ!
सही धूप थी अब तक मैंने,
और मार सही मैंने झोंको की।
पर हिला नहीं मैं हिला नहीं मैं,
पर थोड़ा धूलित हो चुका तो हूँ।
मैं पत्थर की मूरत हूँ!
दिया जन्म था जैसा जिसने,
कर्म किया था उसने ऐसा।
मुझको कुछ ख़ुशी तो कुछ रुष्ठा भी,
आख़िर ज़ख्म मैंने तो भी।
चली यहाँ से गोली तोपें,
मैं पत्थर की मूरत हूँ!
बयान किया जा सकता और नहीं कुछ,
शायद रह जाये मेरा कुछ अंश बाकी।
उम्मीद लगायी फिर भी मैंने,
क्यों ना मेरा कुछ अंश सुरक्षित कर पाओ?
मैं पत्थर की मूरत हूँ!
तुमने बनायीं हैं प्रतिमाएँ जिनकी
जैसी,
छलक दिखाई देती कुछ उनकी है।
मैं पत्थर की मूरत हूँ!
तुम क्यों मुझ पर इतना इतराओ?
तुमने हमको माना ऐसा,
फिर तुम फ़ूल क्यों ऐसे पहनाओ?
मैं पत्थर की मूरत हूँ!

 


सर्वेश कुमार मारुत

 

 

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