Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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प्यारी कोयल-प्यारी कोयल

 

प्यारी कोयल-प्यारी कोयल,
तू इतना प्यारा कैसे गाती है?
तू क्या खाती और क्या पीती?,
तू मुझको क्यों नहीं बतलाती है?
कू-कू ,कू-कू तेरी बोली,
मन में मेरे घर कर जाती है।
तू अपना तो राज़ बता,
फ़िर क्यों नहीं हमराज़ बनाती है?
प्रभात हुआ सूरज निकला,
और तू मधुर गति से गाती है।
तभी पड़े कानों में मेरे ध्वनि,
आकर मुझको जगाती है।
प्यारी कोयल-प्यारी कोयल,
तू इतना प्यार क्यों लुटाती है?
जग ऐसा और बड़े हैं बोल,
पर घमण्ड नहीं तू कर पाती है।
तू सभी पक्षियों से है अच्छी,
सब के मन को बहुत लुभाती है।
कौआ हुआ दीवाना तेरा,
तुझे देख के ऐसे लड़खाता है।
कॉव-कॉव की ध्वनि उसकी,
तेरे सामने फ़ीकी पड़ जाती है।
प्यारी कोयल-प्यारी कोयल,
तू ऐसा क्या-क्या खाती है?
मुझे बता देगी तो मैं भी,
तेरी तरह मीठा-मीठा बोलूंगा।
कुछ तो मैं भी घोलूँगा,
तो अन्यों को भी तो दूँगा।
जग में तू न्यारी कितनी है,
पर तेरी बोली सारे जग में प्यारी है।

 


सर्वेश कुमार मारुत

 

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