Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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शख्सियत पर शख्सियत को

 

शख्सियत पर शख्सियत को , क्यों न लुटा कर देख ले।

फ़िर बने रौनक- ए- ज़िंदगी, तेरे लिए मेरे लिए।

सोचता क्या फिर रहा तू ?, व्यर्थ कर यहाँ से वहाँ ।

मरना है एक दिन सभी को, और फ़िर जाना कहाँ?

कुछ साथ है,-कुछ छूट जाते, डगर पर डगर चलते हुए।

पर न कर गुरूर खुद पर, साथ चल और हौसला देते हुए।

इंसानियत ही इंसानियत हो, और न हो कुछ भी यहाँ

इंसानियत ही इंसानियत रहे बस , और न कोई पाप होगा यहाँ।

 

 

 

सर्वेश कुमार मारुत

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