Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

कहां गई रे गौरैया

 

दादी, ताई, मां, चाची, बहन, भाभी
के छाज के आगे से
घर के आंगन में आकर
फुदक-फुदक के दाना चुगती
कहां गई रे गौरैयां

 

 

घर की छत में
तस्वीर के पीछे ओट में
छोटे-छोटे आलंे-दिवालों में
छोटे- छोटे तिनके चुनकर घर बनाती
कहां गई रे गौरेयां

 

 

बारिस के मौसम में
बदलों से झरती ठण्डी बूंदों में
पेडों, मंउेरांे, व आंगनों के उपर
मासूम अलहड खेलती ठिठुराती
कहां गई रे गौरेयां

 

 

सतीश कुमार चाँद

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ