Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कोई सफर में मुझे भी मिला था कभी

 

 

कोई सफर में मुझे भी मिला था कभी
जीने का एक पल मुझे भी मिला था कभी

 

उससे कुछ भी कहने से ये दिल डरता रहा
मगर उसने बातों-बातों में हाल पुछ लिया था कभी

 

कौन था वो मेरा ये तो बस दिल जानता है
कुछ पल के लिए उसका साथ मैंने भी लिया था कभी

 

ये अंधेरा ही अंधेरा है अब तो चारों तरफ
मेरा भी एक रोशनी भरा दीया जला था कभी

 

क्या हुआ अब बहारें मुझे रूलाती है तो
एक फुल मेरा भी खुशबु का खिला था कभी

 

अंजान राहों में चल कर देख लेना ‘चाॅंद’
अंजान राहों में भी अपना मिल गया था कभी

 

सतीश कुमार चाँद

 

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