Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आँख

 

चेहरा ये कैसा होता गर आँख नहीं होती.
दिल कैसे फिर धड़कता गर आँख नहीं होती.


रक़ीब से भी बदतर हो जाते कभी अपने.
मालूमात कैसे होता गर आँख नहीं होती.


कितना हसीन है दिल चाक करने वाला.
एहसास कैसे होता गर आँख नहीं होती.


कुर्सी के नीचे बर्छी आखिर रखी है क्यूँ कर.
तहक़ीकात कैसे होती गर आँख नहीं होती.


मिलती औ झुकती - उठती फिर चार होती आँखें.
ये करामात कैसे होती गर आँख नहीं होती

 


-- - सतीश मापतपुरी

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