दौरे गम में भी सबको हंसाते रहे .
आँखें नम थी मगर मुस्कुराते रहे .
किसमें हिम्मत जो हमपे सितम ढा सके .
वो तो अपने ही थे जो सताते रहे
जिन लबों को मुकम्मल हँसी हमने दी .
वो ही किस्तों में हमको रुलाते रहे .
उनको हमने सिखाया कदम रोपना .
जो हमें हर कदम पे गिराते रहे .
काश !मापतपुरी उनसे मिलते नहीं .
जो मिलाके नज़र फिर चुराते रहे .
------- सतीश मापतपुरी
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