माना तुम्हारे प्यार का हक़दार हम नहीं.
कैसे कहें कि इश्क में गिरफ़्तार हम नहीं.
किश्ती से क्यों उतर रहे यकीन मानिए.
साहिल हूँ मान लीजिये, मंझधार हम नहीं.
दिल से निकाल के भी क्या निकाल पायेंगे.
दिल कोई मकाँ नहीं , किराएदार हम नहीं.
तेरे शहर को छोड़कर खुद जा रहे हैं हम.
अब किसी ख़ुशी के तलबगार हम नहीं.
मुमकिन ये कैसे है कि दिल बददुआ ना दे .
एक आम सा इंसान हैं, अवतार हम नहीं
...... सतीश मापतपुरी
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