बंजर धरती दूषित हवा - जल, जंगल कटते जायेंगे.
ज़ख़्मी पर्यावरण आपसे , क्या हम बच्चे पायेंगे.
हरी - भरी धरती को आपने, बिन सोचे वीरान किया.
मतलब की खातिर ही आपने, वन - जंगल सुनसान किया.
नहीं बचेगा इन्सां भी, गर जीव - जंतु मिट जायेंगे.
ज़ख़्मी पर्यावरण आपसे , क्या हम बच्चे पायेंगे.
ऐसे पर्यावरण में कैसे, कोई राष्ट्र विकास करेगा.
अब भी गर बेखबर रहे तो, माफ नहीं इतिहास करेगा.
रहते समय नहीं चेते तो, कर मलते रह जायेंगे.
ज़ख़्मी पर्यावरण आपसे , क्या हम बच्चे पायेंगे.
अब भी खास नहीं बिगड़ा है , अब भी वक़्त सम्हलने का है.
कलियाँ कुम्हला गयी हैं फिर भी, अब भी मौसम खिलने का है.
पर्यावरण की रक्षा करके, ही उन्नति कर पायेंगे.
ज़ख़्मी पर्यावरण आपसे , क्या हम बच्चे पायेंगे.
---- सतीश मापतपुरी
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY