Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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फिर याद आने लगे ( गीत )

 


जाड़ में हाड़ जब कंपकंपाने लगे .
भूले मंज़र वो फिर याद आने लगे .

है गुलाबी - गुलाबी फिज़ा का बदन .
कोहरे के आलिंगन में सिमटा गगन .
पाँव से सर तक कम्बल जब आने लगे .

भूले मंज़र वो फिर याद आने लगे .
सर्द मौसम की साँसे हैं कितनी गरम .
ख्व़ाब में उनके होने का होता भरम .
धूप का रूप मन को रिझाने लगे .
भूले मंज़र वो फिर याद आने लगे .
ढोल बजने लगे फाग के ताल पर .
सरसो के फूल सोहे धरा - भाल पर .
जब क्षितिज पे गगन मंडराने लगे .
भूले मंज़र वो फिर याद आने लगे .

 


--- सतीश मापतपुरी

 

 

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