गिला उनको हमसे हमीं से है राहत.
खुदा जानें कैसी है उनकी ये चाहत.
उनके लिए मैं खिलौना हूँ ऐसा.
जिसे टूटने की नहीं है इज़ाजत.
इन्सां से नफ़रत हिफाज़त खुदा की.
ये कैसा है मज़हब ये कैसी इबादत.
बदन पे लबादे ख्यालात नंगे.
यही आजकल है बड़ों की शराफ़त.
सज -धज के मापतपुरी फिर वो निकले.
वल्लाह कहीं आ ना जाए क़यामत.
............... सतीश मापतपुरी
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