लिख दूँ तो हाले दिल खतो - क़िताब में.
एक बार वो पलटकर हँस दें ज़वाब में.
लब भींच के हंसते हैं, बोलते नहीं.
जब भी हुई है बात, हुई है ख़्वाब में.
चाँद सा मुखड़ा है पर चाँद वो नहीं.
दिखता है दाग दूर से, माहताब में.
वोटर भी अबके उतने भोले नहीं रहे.
वो जानते हैं क्या छिपा, है आदाब में.
रोना कहाँ हंसना कहाँ , जानते हैं वो.
गिरगिट सा बदलने की अदा, है ज़नाब में.
दर- ब- दर क्यों ढुंढते महबूब को मियाँ.
दिखता है अक्स उनका, ग़ज़ल की क़िताब में.
-------------- सतीश मापतपुरी
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