Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

हसीना उसको कहते हैं

 

हसीं गालों पे जो चमके, नगीना उसको कहते हैं.
घनीं जुल्फों से जो टपके, तो मीना उसको कहते हैं.


यूँ कहने को तो मयखाने में, लाखों रोज़ पीते हैं.
जो छलके गहरी आँखों से, तो पीना उसको कहते हैं.


मचल जाता फिजा का दिल, हसीं जुल्फें बिखरने से.
जो पत्थर को भी पिघला दे, हसीना उसको कहते हैं.


ख़ुशी में हंसना- खुश होना, जहां में सबको आता है.
मगर जो हँस के गम सह ले, तो सीना उसको कहते हैं.


महलों के गलीचों पे पसीना, आता है पुरी.
मगर खेतों में जो बहता, पसीना उसको कहतें हैं

 


गीतकार- सतीश मापतपुरी

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ