Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मर्ज़ी नहीं तो क्या हुआ

 

हर ख़बर अख़बार की सुर्खी नहीं तो क्या हुआ.
हो रहा है जो मेरी मर्जी नहीं तो क्या हुआ.


और भी आयेंगी रुत मायूस यूँ मत होइए.
आखिरी मौसम नहीं , अबके नहीं तो क्या हुआ.


हम नहीं कोई और - कोई और या कोई और हो.
आप तो खुश हैं सनम हम ही नहीं तो क्या हुआ.


एक बरगद आज भी यूँ ही खड़ा है गाँव में.
अब कोई आराम ही करता नहीं तो क्या हुआ.


फूल गमले में खिलाकर क्या करेंगे मान्यवर.
रुत बसंती आके भी रुकती नहीं तो क्या हुआ.

 


...................... सतीश मापतपुरी

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