Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मेरी कलम ने तुम्हें , महबूबा बनाया है .

 

जान ले लेगा वो तिल, लब पे जो बनाया है .
मेरी कलम ने तुम्हें , महबूबा बनाया है .


मुस्कुराती हो जब तो गालों पे, जानलेवा भंवर सा बनता है.
खोलती हो अदा से जब पलकें , झील में दो कँवल सा खिलता है.


साथ जिसको नहीं मिला तेरा, बेवजह वक़्त क्यूँ गंवाया है.
मेरी कलम ने तुम्हें , महबूबा बनाया है .


हुस्न की देवी तेरे ही दम से, खिलते हैं फूल दिल के गुलशन में.
देखकर ...तुमको ही ये हुरे ज़मीं , पलते हैं इश्क दिल की धड़कन में.


हर कोई देखता है तुमको ही, रब तुम्हें आईना बनाया है.
मेरी कलम ने तुम्हें , महबूबा बनाया है .


कल कहीं तुम जुदा ना हो जाओ , बात ये सोचकर मैं डरता हूँ.
अपने गीतों में अब सदा के लिए , कैद तुमको मैं आज करता हूँ .


आके छुप जाओ तुम ख्यालों में, मेरे शब्दों ने ही सजाया है.
मेरी कलम ने तुम्हें , महबूबा बनाया है .

 


-----सतीश मापतपुरी

 

 

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