जान ले लेगा वो तिल, लब पे जो बनाया है .
मेरी कलम ने तुम्हें , महबूबा बनाया है .
मुस्कुराती हो जब तो गालों पे, जानलेवा भंवर सा बनता है.
खोलती हो अदा से जब पलकें , झील में दो कँवल सा खिलता है.
साथ जिसको नहीं मिला तेरा, बेवजह वक़्त क्यूँ गंवाया है.
मेरी कलम ने तुम्हें , महबूबा बनाया है .
हुस्न की देवी तेरे ही दम से, खिलते हैं फूल दिल के गुलशन में.
देखकर ...तुमको ही ये हुरे ज़मीं , पलते हैं इश्क दिल की धड़कन में.
हर कोई देखता है तुमको ही, रब तुम्हें आईना बनाया है.
मेरी कलम ने तुम्हें , महबूबा बनाया है .
कल कहीं तुम जुदा ना हो जाओ , बात ये सोचकर मैं डरता हूँ.
अपने गीतों में अब सदा के लिए , कैद तुमको मैं आज करता हूँ .
आके छुप जाओ तुम ख्यालों में, मेरे शब्दों ने ही सजाया है.
मेरी कलम ने तुम्हें , महबूबा बनाया है .
-----सतीश मापतपुरी
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY