कतरा के यूँ ना जाइए तलवार हम नहीं .
छोटा ही आदमी सही बेकार हम नहीं.
हर शाम ही रोती हैं महंगाई का रोना.
कैसे बताएं उनको सरकार हम नहीं .
फूलों को लगाते हैं जुड़े में प्यार से .
हमसे बचाते दामन ,कोई खार हम नहीं.
माना की आप ही हैं अभी देश के खुदा.
सूरत बदल सकती है लाचार हम नहीं.
फरमाइशों से आपकी आज़िज आ गए.
अजी आपके दिवाने हैं, बाज़ार हम नहीं .
मेरी तरफ से आपको आज़ादी है सनम.
आपके तलबगार हैं , मुख्तार हम नहीं .
... सतीश मापतपुरी
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY