नारी - धरा की कहानी अजीब है .
सब कुछ सहना ही उसका नसीब है .
नारी के गर्भ से ही, ज़िन्दगी जनमती है .
धरती के गर्भ से ही, ज़िन्दगी पलती है .
फिर भी ये दुनिया, दोनों का रकीब है .
सब कुछ सहना ही उसका नसीब है .
कन्या की भूर्ण ह्त्या, कर रहा समाज है .
धरती की हरियाली का, करता विनाश है .
कब समझेगा मानव, कितना बदनसीब है .
सब कुछ सहना ही उसका नसीब है .
नारी पुरुष की माता, पत्नी - राज़दार है .
नारी सिंगार है तो, नारी कटार है .
नारी सा बैरी ना, कोई नारी सा हबीब है .
सब कुछ सहना ही उसका नसीब है .
--- सतीश मापतपुरी
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