आज दुनिया में उन्हीं की शान है .
सबसे ज्यादा जो यहाँ बदनाम है .
दम तो भरता है पड़ोसी दोस्ती का .
पर सिला में मिलता कत्लेआम है .
रह गया मन्दर और मस्जिद ही यहाँ .
अब वहाँ रहता खुदा - ना राम है .
चढ़ गये कुर्सी तो फिर क्या सोचना .
जब तलक कुर्सी है बस आराम है .
वक़्त कैसा आ गया मापतपुरी.
रब का बन्दा ही यहाँ नाकाम है .
--- सतीश मापातपुरी
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