कोठी ना ये बँगला,ना ये कार चाहिये .
देश है लाचार , संस्कार चाहिये .
भूल गए लोग सब , रीति पुरानी .
रस्मों - रिवाज की , दुर्लभ कहानी .
उन्हीं दस्तानों का,प्रचार चाहिये.
कोठी ना ये बँगला,ना ये कार चाहिये .
देश है लाचार , संस्कार चाहिये .
उनको मिला है सब कुछ , जिनको तमीज़ नहीं .
नारियल कपि के कर , देने योग्य चीज नहीं .
देश है बीमार, उपचार चाहिये .
कोठी ना ये बँगला,ना ये कार चाहिये .
देश है लाचार , संस्कार चाहिये .
आज जरूरत है फिर , भगत - हामिद की .
देश को बचाने की वो , जज्बा और ज़िद की .
अब ना लुटेरा , ना गद्दार चाहिये .
कोठी ना ये बँगला,ना ये कार चाहिये .
देश है लाचार , संस्कार चाहिये .
.... सतीश मापतपुरी"
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