"सांवला रंग तेरा बेहतरीन लगता है .
नज़र को तेरा नज़ारा हसीन लगता है .
बाँहों में जब सिमट के आती हो ,
आसमां भी ज़मीन लगता है .
मेरी चाहत ने जब से चाहा तुम्हें
सारा आलम रंगीन लगता है.
तेरे नूरानी हुस्न के आगे ,
चाँद कितना मलिन लगता है .
जब भी परदा नशीन होती हो ,
जुर्म तेरा संगीन लगता है .
--- सतीश मापतपुरी"
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