चाँद नभ में आ गया, अब आप भी आ जाइये.
सज गई तारों की महफ़िल, आप भी सज जाइये.
नींद सहलाती है सबको, पर मुझे छूती नहीं.
जानें आँखें पथ से क्यों,क्षणभर को भी हटती नहीं.
प्यासी नज़रों को हसीं, चेहरा दिखा तो जाइये.
कल्पना मेरी बिलखती, वेदना सुन जाइये.
सज गई तारों की महफ़िल, आप भी सज जाइये.
कब तलक मैं यूँ अकेला, इस तरह जी पाउँगा.
इस निशा- नागिन के विष को, किस तरह पी पाउँगा.
इस जहर में अधर का, मधु रस मिला तो जाइये
याद जो हरदम रहे, वो बात तो कर जाइये
सज गई तारों की महफ़िल, आप भी सज जाइये.
धीरे-धीरे नील नभ, धरती पे झुकता आ रहा है.
बादलों की गोद में अब, चाँद धंसता जा जा रहा है.
तन्हा है मापतपुरी, अब साथ तो दे जाइये.
सो गया सारा शहर, थमते कदम आ जाइये.
सज गई तारों की महफ़िल, आप भी सज जाइये.
गीतकार- सतीश मापतपुरी
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