नये नये पाठक गण आयें
हों कितने भी पीने वालें,
कुछ जोड़ दिया पहले वाले में
मैंने भी अपना प्याला;
आयें सब चख इसे बतायें
कितनी इसकी मादकता ;
प्याला चुन-चुन बतलायें सब
क्या सच्ची यह मधुशाला ? १
कितनों ने पूछा मुझ से यह -
समझे इसको क्या अपना प्याला ?
मैं न पापी ऐसा समझूँ ;
जग तुम्हे समर्पित बच्चन हाला ;
मान बढ़ाना इसका इतना
फले-फुले, यह बनी रहे ;
मैं तो साकी बन कर आया,
हूँ लाया बच्चन-मधुशाला । २
यह बच्चन की मधुशाला
जिसको लेकर मैं आया,
ले-लो स्वागत इसका भी हो
जो सन चौंतीस से अब तक छाया ;
नहीं अभी भी रस खोया इसने,
मादकता भी बढ़ी हुई है ;
जब-जब जितने भी आयें हों, सबने ही स्वागत पाया
अब भी आँख बिछाए बैठी , हाँथ पसारे मधुशाला । ३
प्यासा दर-दर भटकेगा ना
आज हूँ लाया ऐसा प्याला,
मिले मधु उनको भी,आ जा
जिसने है गऊ को पाला ;
आज निचोरूँगा जीवन के
सारे पीने वाले रस को
और उसे तब भर प्याले में
जग,तुम्हें बुलाऊंगा मधुशाला । ४
प्रेयसी, अपने दिल की चाभी से
खोल दो मेरे दिल का ताला,
आज मैं छू अधरों को तेरे
पा जाऊँगा मैं हाला ;
मैं तुझ से हूँ,
तू मुझ से है ;
एक दूजे का हाँथ थामकर
आओ,चलें हम मधुशाला । ५
कल्प चित्र हैं कितने खींचे
शब्दों की पिरोकर माला,
लाया जग तुमको दिखलाने
मैं अपनी कविता-प्याला;
भर-भर लोटा खाली करने,
आ न पाया कोई समंदर !
क्या हुआ कभी पीने से खाली, यह जीवन कविता-प्याला,
आज कोटियों पाठक गण हों, नहीं भरेगा मधुशाला । ६
चलता रहा निरंतर खुद मैं
दिया बनाकर ढेरों प्याला,
कईयों ने इनकार किया है,
बहुतो ने स्वीकारा प्याला;
इस मदिरा को पीकर मैंने
देखा और महसूस किया
शायद सबसे ज्यादा मादक, हाला, प्याला दोनों ही
मेरा जीवन, मैं मधुशाला । ७
अपनी शाळा से निकला
था जाने को मदिरालय,
राह भटक, मन सकुचाया
थम गया वहीँ पीनेवाला;
अगर बढ़ाए पग सीधे को
नाक-सीध, बढ़ पवन-गति सा
कोई न दूजा पथ अपनाना,
आगे को है मधुशाला । ८
कितना खोजा हाय परन्तु
दिखा हमेशा लटका ताला,
आगे बढ़ता जाता जितना
दूर दीखे, उतना प्याला;
कर के अपना जीवन जाया,
नहीं अभी तक कुछ पाया;
हाय रे, किस्मत मेरी ऐसी
ढून्ढ रहा अबतक मधुशाला । ९
जाप निरंतर करता बढ़
जाम-जाम, मदिरा, प्याला ;
आँख मूँद पथ पर चलता चल
अधरों पर न नाम कोई दूजा, केवल-केवल हो हाला ;
सच्चे मन से एक पुकार,
पहुंचेगी साकी के पास ;
हाँथ बढ़ा बुलवा लेगी, तुझको
यौवन साकी का, मधुशाला । १०
नाम न कुछ भी सुन पाता, जब
गूँजें कानों में प्याला,
अधरों पर ना नाम कोई दूजा
बस सुरा -सुराही और हाला;
जग पूछ रहा साकी-साकी,
भरा सुराही किधर को रक्खा,
साकी कह बुलवाती, आ मतवाले,
तेरी ही यह मधुशाला । ११
सतीश कुमार
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