तन हारे तन पर इतना
मन अब तक ना स्वीकारे है
हैं कितने मालूम ना अब तक
गिनते रातों के तारे है
कहना तो कितना कुछ अब भी
वो कहते सारा वारे हैं
लेकिन मुझको अब भी लागे
वो भी तन से ऊपर ना उठ पावे है
देखो झूम रही है सारी दुनिया
इस झूठे आडम्बर में
कहते सारे एक लब्ज में
मुझको तुम से प्यार हुआ है
मैं पूछूँ उन सब लोगों से
गर सच्चा है प्रेम तुम्हारा,क्या तुम त्याग करोगे इसका
अगर नहीं तो मेरी सुन लो
यह प्रेम तुम्हारा कच्चा है
तन की भाषा मालूम सबों को
मन की किसको आवे है
जो जितना नीचे बैठा है
वह ही ज्यादा चिल्लावे है
कसमें जितने भी खायें,सब
झूठे सारे वादे हैं
एक भी हो गर सामने आयें
जिसके नेक इरादे है
मैं कहता दुनिया तुमको अब भी
सारे तन पर ही हारे हैं
जो कह दे मेरा मन स्वीकारे
उस पर मेरा मन हारे है
यह गीत हूँ लाया संदेशे संग
अब ना मेरे, सब थारे है
तन हारे तन पर इतना
मन अब तक ना स्वीकारे है ।
- सतीश कुमार
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