Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मतले की क्या जरूरत किसी गज़ल में

 

मतले की क्या जरूरत किसी ग़ज़ल में
मज़ा नहीं आता मुझे किसी नक़ल में

 

मेरी बात बस लोगो तक पहुँच सके
बस यही तो सरोकार है असल में

 

बहुत दिनों से सोच रखा था इसे
ऐसा नहीं कि आया आज-कल में

 

गज़लों में कहा जा रहा बहुत कुछ
मैं नहीं शामिल इस हलचल में

 

हो कोई नई शुरुआत मेरी शाईरी से
मुझे विश्वास ऐसे किसी पहल में

 

शब्दों का तकिया, शब्दों की चादर बना
इक हुजूम मजे से लेटा मखमल में

 

कोई कर रहा गलत रास्ते अख्तियार गर
उसे बताओ, नाफ़रमानी नहीं ऐसे दखल में

 

तुम्हारे नुमाइंदे तुम्हारे उसूल होने चाहिए
कहीं बदल ना जाना दुनिया की बदल में

 

गज़लों से जब जी उचटै तो सुनो
शामिल होना 'सतीश' के ग़ज़ल में

 

सतीश कुमार

 

 

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