Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मोह-माया

 

मोकौं दिलासा दीहो काहे

मोकौं न कोई आस हय

काहे दिखाये मोकौं रे दुनिया

मोकौं न कोई प्यास हय

 


दिल ही दिल में मारत फिरता

कहाँ खोया विश्वास हय

ढूँढ़े न बंदा दिल के अंदर

जाने न काहे उदास हय

 


सृष्टि सारी,जग यह पूरा

रुपया का सब दास है

जो है किनारे बंसी लिये,बस

सुख के वहीँ पर वास हय


मोह-माया में फँसता गया जो

उसका जीवन नाश हय

जिसने मुक्ति पायी इससे

चले उसी का स्वास हय

 


तुमने ओ बंधु जाना इसे तो

युक्ति भी तेरे पास है

वरना ओ बंधु तुम भी बँधे हो

इसका मुझे विश्वास हय



- सतीश कुमार

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