तीन रंगों का ही कारवां चाहिए ,
हो मोहब्बत जहां बागवां चाहिए ।
अंधबिश्वास, आतंक औ नफ़रतें ,
जो मिटा दे वही नौजवाँ चाहिए ।
हर परिन्दें उड़ें हो के बेखौफ अब ,
मुझको ऐसा नया आसमां चाहिए ।
सब इबादत करें माँ की ईमान से ,
इससे ज्यादा खुदा और क्या चाहिए ।
मैं रहूँ ना रहूँ कोई गम है नहीं ,
पर सलामत मेरा आशियाँ चाहिए ।
सत्यदेव विश्वकर्मा
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