Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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माँ

 


माँ ईश्वर का दिया एक अमूल्य उपहार है ।महत्व तब समझ आता है जब........सब
कुछ मिल जाता है लेकिन हाँ "माँ नहीं मिलती"।
माँ तुमने जो राह बतायी
उसी पर चला करता हूँ
तब और अब में फर्क इतना है
तब सीखने के लिए समय न मिलता था
अब तुम्हारे लिए समय नहीं है
तब चंद पल आपसे दूर रहना मुश्किल था
अब चंद पल आप के साथ बिताने का समय कहाँ
तब तेरी गोद से अलग बिछौना न था
अब तेरी गोद का बिछौना ही नहीं यहाँ
तब स्वाद था,खाने का नही ,तुम्हारी उंगलियों से बरसते स्नेह का
अब न स्वाद है खाने में ,
तेरी उंगलियों से लिपटे खाने का नसीब कहाँ
तब तुम्हारी डांट बड़ी बुरी लगती थी
अब खुद को डाँटना भी भूल गया ,आपकी डांट कहाँ जो बुरी भी लगे
तब उत्तेजना दर्शाने को तुमसे आलिंगन ही काफी था
अब उत्तेजना आपकी यादों के पीछे दब कर रह जाती है
तब मेरे पलकों से चले आँसू पूरे कपोल का सफर भी तय न कर पाते थे
पहले झाँकते थे आँखों से ,ढूँढते थे तुम्हें
तेरे हाथो का स्पर्श पा सारा दुख भूल जाते थे
अब न वो स्पर्श है ,न ही झांकना पसंद है अब इन्हें
तुम्हारे इंतज़ार में सदियों बिताये इन्होने
जाने इस दरम्यान कैसे कैसे थपेड़े खाये इन्होने
अब फोन पर तेरे आवाज का आलिंगन कर
बरसने की इजाजत माँगा करती हैं मुझसे
तब सर्दी -गर्मी का भान कहाँ होता था नींद में
तुमसे लिपटकर जैसे हर मौसम बसंत था
अब नींद भी छोड़ जाती है मुझे,प्यार से बुलाता हूँ
गले लगाने को मुझमे समाने को
मुह फुलाए आती है, दुम दबाये भाग जाती है
पता नहीं इसे मुझसे शिकायत है या तुमसे।

सत्यम

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