Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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नयनों का संसार

 

मौन की अद्वितीय भाषा में,
अपूर्णता नहीं,क्षुद्रता नहीं,
विचित्र नयनो की अभिलाषा में ,
अपंगता नहीं ,अक्षमता नहीं

मौन की शक्ति समाहित द्वोर्जा में
प्राकृत प्रकट,पर कोई चंचलता नहीं
पूरा विश्व अवतरित द्विनेत्रों में
न ही सीमित ,अविनीत नहीं

दया,प्रेम,करुणा,त्याग इस संसार में
ईर्ष्या नहीं,धृष्टता नहीं
प्रतीत होते हैं एक आग्रह में
सह सकती नहीं अवहेलना,बेवफाई नहीं

विदित होता है टेसुओं से
विक्षोह नहीं,बस एकता है ,पर प्रतिभूति नहीं
सम्मोहित हूँ मैं ,डूबता रहा हूँ अथाह सागर में
बचने की कोई गुंजाइश नहीं,और ख्वाहिश भी नहीं|

सत्यम

 

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