Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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यही जिंदगी है

 


satyam

हर सुबह इक नई रोशनी है
जो बहती जाए वही जिन्दगी है
रंगों के संग हर पल उमंग
खिल जाए पतझङ में बसंत
वही जिन्दगी है

झंझावातोँ के संग भी उल्लासित है मन
कहीं दूर है दिख रही,आशा की कई किरण
उसी आश की साख से हर्षित हूँ मैं
वरना टुकङोँ कोँ जोङना और फिर टूट जाना भी
वही जिन्दगी है

महलोँ के कमरों में भी वही जिन्दगी है
परकोटे के गमलोँ में भी वही जिन्दगी है
शुष्क होती अधरोँ पे भी वही जिन्दगी है
जहाँ जहाँ ढूँढो,पत्तों पे भी चलती
वही जिन्दगी है

फूलों में हँसती ,पहाङोँ पे बसती
जल में विचरती,नभ में उङती
काँटोँ में खिलती ,झुग्गी झोपङियोँ में पलती
हर पल इठलाती भवरोँ के स्वर में गाती भी
वही जिन्दगी है

इतने रंग हैं जीवन के जितने खुद रंग भी नहीं
फिर क्यों है विवश टूटने को
हर पल आश छूटने को
रँगीँ से बेरंग होने को
गलियों में अनाथ रोने को, जिंदगी॥

 

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