Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

आपका स्वास्थ्य और चिकित्सा

 

(सत्यनारायण पंवार)

 


हमारे देश में 80 प्रतिशत स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ केवल 2 प्रतिशत लोगों को ही मिल रहा है जबकि 80 प्रतिशत लोग केवल 20 प्रतिशत स्वास्थ्य सुविधाओं से अपना काम चला रहे है। इसलिए जनसंख्या वृद्धि, कुपोषण, पर्यावरण प्रदूषण, घातक बिमारियों का जन्म, समेकित स्वास्थ्य सेवा इत्यादि हमारे स्वास्थ्य की दुर्गति की देन है। गांवो में कुछ ग्रामीण लोग महीनों तक स्नान नहीं करते, कपड़े नहीं धोते, नाखून नहीं काटते, दांतों को साफ नहीं करते जिससे उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और बिमारियों से ग्रस्त हो जाते है। उनका समय पर इलाज नहीं होने से वे कभी-कभी मृत्यु के आगोश में चले जाते है। हमारे देश में मलेरिया, कुष्ट रोग, अन्धता, और तपेदिक की बिमारियों जन स्वास्थ्य समस्याएं बनी हुई है। हमारे देश की सामाजिक आर्थिक और भौगोलिक कठिनाईयो ने उपरोक्त जनस्वास्थ्य समस्याओं को ओर भी कठिन बना दिया है। हमारी सरकार का उŸारदायित्व है कि इन उपरोक्त बिमारियों से ग्रस्त लोगांे का जल्द से जल्द पता लगाया जाय और उनके इजाल की तत्काल व्यवस्था की जाय ताकि रोग के संक्रमणता तथा संचार की कड़ी को तोड़कर इसके प्रसार को रोका जा सके। कहते है - सबसे बड़ा धन निरोगी काया।
सम्पूर्ण स्वास्थ्य जीवन के लिए आध्यात्मिक, भावनात्मक, सामाजिक और शारीरिक पहलू को शामिल करना आवश्यक है। भावनात्मक विकृतियों के द्वारा व्यक्ति को शारीरिक बीमारियां हो सकती है। घर के अन्दर और बाहरी बल देना, ज्यादा परिश्रम और तनाव से स्वास्थ्य खराब होने लगे तो डाक्टर की शरण में जाना ही पड़ता है। पेशेवर किसी प्रकार की बिमारी के वक्त हमें आदमी (जो प्रशिक्षित हो और हमारी समस्या का समाधान कर सके) के पास जाना ही पड़ता है। हम चिकित्सक, दंत चिकित्सक, समाज सेवी और मनोवैज्ञानिक इतयादि के पास जाना ही पड़ता है। क्यांकि सम्पूर्ण स्वास्थ्य को ठीक करने वालो का एक दल है। इन पेशेवर लोगों के पास जाने के साथ-साथ एक महत्वपूर्ण बात है (विश्वास) यानि ‘‘ जो काम नहीं हो सकता उसकी सफलता के बारे मं सोचना। यह विश्वास दिखाई नहीं देता लेकिन व्यक्ति के भवनात्मक, सामाजिक जीवन और आध्यात्मिक जीवन में मौजूद रहती है।
एक फिजीशियन भी विश्वसनीय मनुष्य होता है जिसे भगवान में विश्वास होता है अपनी काबलियत और अपने कार्यो, नसों में, दवाईयों में विश्वास होता है। बीमार से बातचीत करने पर चिकित्सक को पता चलता है कि बीमार को चिकित्सक में विश्वास है या नहीं। चिकित्सक समझदार आदमी होता है और वह आपके विश्वास के सहारे ही आपका इलाज करता है। एक मजबूत निश्चित विश्वास परिवार के सभी सदस्यों को भवानात्मक और मानसिक सुरक्षा में बांध कर रखता है।
अच्छी चिकित्सा व्यवस्था के लिए पूर्णरूप से प्रशिक्षित चिकित्सक और अस्पताल में पर्याप्त सुविधायें उपलब्ध होने के अलावा डाक्टरों और मरीजों के बीच में व्यक्तिगत सम्बंध में खिंचाव पैदा हो जाता है क्योंकि हमारे सामाजिक ढांचों में बदलाव, टूटते परिवार, जनसंख्या की गतिशीलता और विशेषज्ञों की ओर झुकाव, इन सम्बंधों को प्रभावित करते है। मनोवैज्ञानिक डाक्टरों और मरीजों के बीच में सम्पर्क को अधिक महत्व देते हैं क्योंकि इसी के आधार पर ठीक मानवी रिश्ता बनता है और मरीज की बीमारी आधी हो जाती है। ऐसी परिस्थिति में डाक्टर का कर्तव्य हो जाता है कि मरीज की बातों को ध्यान से सुनकर उनके बीमारी का इलाज करें या मनोवैज्ञानिक को दिखाने की सलाह दें।
मरीजों को अधिकतर शिकायत रहती है कि सरकारी अस्पताल के डाक्टर के पास इतना समय नहीं होता कि वें मरीज की बातों को पूरा सून सके। डाक्टर इंसान है और उन्हंे पता है कि उसे बहुत सारे इंतजार करते मरीजों का चिकित्सक परीक्षण करना है और उसके पास सीमित समय है। इतना ही नहीं कुछ मरीज एक ही बात को बार-बार कहते है और डाक्टर के पास इतनी सहनशीलता और समय नहीं होता कि वह मरीज पर अपना ज्यादा समय खर्च करें। डाक्टर बचे हुए मरीजों पर समय के अभाव में पूरी तबज्जों नहीं दे सकता।
मरीजों की दूसरी शिकायत है कि डाक्टर से मिलने के लिए मरीजों को बहुत देर तक इंतजार करना पड़ता है। डाक्टर को पहले आने वाले मरीज को पहले और बाद में आने वाले को थोड़े इन्तजार के बाद देखने का अवसर मिलता है। इसलिए अनुशासन और समय को ध्यान में रखकर डाक्टर को काम करना पड़ता है। मरीजों की तीसरी शिकायत रहती है कि डाक्टर रोग-निदान और उपचार के कारण नहीं समझाते। डाक्टर का यह कर्तव्य हो जाता है कि मरीज को बीमारी के बारे में और उसके उपचार के बारे में मरीज को अवश्य समझाये जिससे मरीज का भावनात्मक तनाव दूर हो जाये। मरीजों की चैथी शिकायत है कि डाक्टरों को घर पर दिखाने के लिए डाक्टर लोग बहुत ज्यादा फीस लेते है जो साधारण नागरिक उसे देने में असमर्थ होता है। ऐसी परिस्थिति में डाक्टरों को न्याय संगत फीस लेनी चाहिए। हो सके तो बहुत गरीब मरीज को मुफ्त सलाह भी देनी चाहिए। वास्तव में डाक्टर का पेशा जनता की सेवा करना है, उसे व्यापार नहीं बनाना चाहिए। आजकल देश के नागरिकों के स्वास्थ्य की देख-रेख के लिए स्वास्थ्य सम्बंधी संस्थाएं मुफ्त सेवाएं देने लगी है। समय समय पर आवश्यकतानुसार ये संस्थाएं नागरिकों को विशेष बिमारियों, उच्च रक्त दबाव, अस्थमा, मोतिया बिन्दु को हटाना, डाईबिटिज, कान नाक का इलाज इत्यादि से मुक्ति दिलाने के लिए शहरों और गांवों में केम्प लगाती है।
नागरिकों के स्वास्थ्यों की देख रेख केवल डाक्टर ही नहीं कर सकते बल्कि नागरिेकों को स्वयं स्वास्थ्य शिक्षा के ज्ञान के द्वारा वे अपने स्वास्थ्य की ओर ध्यान दे सकते है। इसलिए सभी स्कूलों और शिक्षण संस्थाओं में स्वास्थ्य की देखरेख सम्बंधी पुस्तके, पत्रिकाएं और अन्य सुचनाएं उपलब्ध होनी चाहिए। सरकार को विज्ञापनों, दूरदर्शन और रेडियों पर स्वास्थ्य सम्बंधी चेतनाओं का प्रसार और प्रचार करना चाहिए, जिससे देश के नागरिक लाभान्वित हो। इतना ही नहीं घरेलू इलाजों के बारे में सभी नागरिकों को शिक्षा मिलनी चाहिए जिससे वे छोटे रोगों से मुक्ति पा सके। शारीरिक खेलकूद, आसन, व्यायाम, और प्राणायाम भी नागरिकों में रोग प्रतिरोधक शक्ति उत्पन्न कर सकते है।
हम आज के भागमभाग व तनावपूर्ण महोल में जी रहे है-स्वास्थ्य की ओर ध्यान नहीं देते है तथा स्वयं बिमारियों को बुलावा देते है। हमारी थोडी सी लापरवाही, असावधानी व स्वास्थ्य के प्रति उदासीनता का खामियाजा हमें भुगतना पड़ता है साथ ही हमारे परिवारिक जनों को भी भुगतना पड़ता है। स्वस्थ रहना भी एक कला है विज्ञान है तथा दर्शन है। अतः इसे अपनाइये एवं बिमारियों को दूर भगाईये।

 

 


(सत्यनारायण पंवार)

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ