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अहंकार त्यागे

 

(सत्यनारायण पंवार)

 

 

किसी भी समाज का पूर्ण विकास करने के लिए सभी सदस्यों का शिक्षित होना अति आवश्यक है। समय के साथ-साथ शिक्षित लोगों की संख्या बढ़ रही है। अधिकतर देखा गया है कि गांवों, कस्बों और शहरों में समाज अहंकारी लोगों के कारण दो गुटों में बंटे हुए हैं। एक गुट में सारे शिक्षित लोग तो दूसरे गुट में अशिक्षित और कम शिक्षित लोग। जहां भी समाज के सभी लोग समाज के विकास के लिए मिलते है, तो एक गुट, दूसरे गुट के सुझावों की आलोचना करने लगता है जैसे राजनीति में पक्ष और विपक्ष पार्टीयों के लेाग एक दूसरी पार्टी को नीचा दिखाने की कोशिश करते है। इस प्रकार दो गुटों के समाज की एकता कमजोर होती है और सार्वजनिक सामाजिक विकास बन्द ही हो जाता है।
ऐसा भी देखा गया है कि समाज पढ़े लिखे लोगों में भी लोग एक दूसरे को हेय की दृष्टि से देखते हंै। हमारे समाज में खासकर इंजीनियर, डाॅक्टर, आई.ए.एस., आर.ए.एस. और अन्य कुछ अफसरों में अपने ओहदे का अहंकार आ जाता है कि वे पढ़े लिखे दफ्तर के बाबुओं, स्कूल के शिक्षकों, अस्पताल के नर्सिग असिस्टेंटेड सैना के सिपाहियों और अन्य कर्मचारियों (नोन गजेटेड) से मिलना जुलना और बात करने में अपनी तोहिन समझते हैं। मैंने एक डाॅक्टर को यह कहते सुना-श्रीमान् ‘अ‘ एक मास्टर है। क्या मैं उस टटपूंजियें की लड़की से शादी करूगां? अगर अफसरों से कोई साधारण समाज के लोग अपना काम कराने के लिए किसी अफसर के दफ्तर में जाते हैं तो कुछ अफसर टपेपजवतश्े ब्ीपज देखकर मिलने से मना कर देते है। समाज में कम लोग अफसर और धनवान होते है इसलिए उनमें अहंकार की भावना घर कर जाती है और वे घमण्ड करते हैं। कि उनके जैसा धनवान और ओहदे वाले लोग समाज में है ही नहीं। इस प्रकार का अहंकार एक रोग बन जाता है इसलिए धन, यौवन और ओहदे का घमण्ड न करो।

 


समाज के सभी लोग इस दुनिया में मानव के रूप में पदार्पण करते हैं इसलिए सबसे पहले हम सभी मानव है। मानव पढ़ लिखकर अच्छा नागरिक बनता है जिससे वे प्रेेम पूर्वक अपना जीवन व्यतित कर सके। समाज के कुछ लोग धनी हो जाते है और कुछ पढ़ लिखकर अफसर बन जाते है तो कुछ साधारण कर्मचारी बन जाते है कुछ अपना धंधा करते है और सभी को भाईचारे के साथ हिल मिलकर रहना चाहिए जिससे समाज का सही दिशा में विकास हो लेकिन कुछ लोगों का अहंकार हमारे समाज को विच्छेदित कर देता है। अहंकारी लोग जितने छोटे होते है उनका अहंकार उतना ही बड़ा होता है। अहंकार शब्द कान में पड़ते ही हमारा ध्यान शिक्षित रावण व कंस की ओर चला जाता हैं जिसका हम लोग हर साल पुतला जलाते है।

 


अहंकारी मानव अपनी गल्तियों की तह बना कर रखता है और अन्त में पापों का घड़ा भर जाता है तो विस्फोट के साथ उसकी पराजय होती है। अहंकारी के मित्र कम होते हैं और अन्त में उसका जीवन अशान्त हो जाता है और उसका नाश हो जाता है। वास्तव में अहंकार से कई रोग उत्पन्न हो जाते है खासकर उक्त रक्त चाप, हृदय रोग, मिर्गी इत्यादि। व्यक्ति को अहंकार जैसे रोग से मुक्त होने के लिए अपने धन और ओहदे को घमण्ड को भूलकर ‘इंसानियत‘ को अपनाना चाहिए। भावों में निर्मलता लाना चाहिए। निर्मलता से उपरोक्त रोग मन्द पड़ जायेगें और व्यवहार मृदुल बनेगा। सबका चिन्तन विवेक युक्त हो, सभी लोगों को अपना भाई बहिन समझे और सबका आदर करें जिससे जीवन सुख-शान्ति में बितेगा। वास्तव में अहं की भावना रखना एक अक्षभ्य अपराध है। वास्वत में अहंकार छोड़े अन्यथा सुखी समाज नहीं बन सकता।

 

 

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