Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

अपने आप को पहचानिये

 

(सत्यनारायण पंवार)

 


हमारा देश एक लोकतांत्रिक गणराज्य है। हमारी सरकार प्रत्येक नागरिक को शिक्षित बनाने के लिए नई चुनौतियां और सामाजिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय शिक्षा नीतियां लागू करती है। आधुनिक शिक्षित नागरिकों के द्वारा देश का आर्थिक विकास तो अवश्य हुआ है, लेकिन मानसिक मूल्यों का पतन क्यों होता जा रहा है।

 


दुनिया के अलग-अलग शिक्षा शास्त्रियों ने शिक्षा की परिभाषा को अपनी सूझबूझ के अनुसार अपने शब्दों में बांधा। क्या हम शिक्षित लोग उनकी परिभाषाओं के अनुसार अच्छे नागरिक हैं? शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ सर्टिफिकेट और डिगरियां प्राप्त करने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है कि देश का प्रत्येक शिक्षित निवासी को एक अच्छा नागरिक बने और देश की उन्नति में सक्रिय भाग ले सके। आज हम भारत वर्ष के शिक्षित वर्ग की आदतों और व्यवहार का विश्लेषण करें तो एक प्रश्न खड़ा हो जाता है क्या हम अच्छे नागरिक हैं?

 


दुनिया के ज्यादातर देश भारत से अधिक स्वच्छ और सुन्दर क्यों दिखाई देते हैं। क्या उन देशों की सरकार ज्यादा ध्यान रखती है। नहीं उन देशों के नागरिकों में अनुशासन की भावना है तथा वे लेाग राष्ट्रीय भावना से भरे हुए हैं लेकिन हम इतने स्वार्थी है कि देश के प्रति कोई रूझान नहीं। भारत के नागरिक पान की पीक कहीं भी थूक देते हैं। केले और मूंगफली के छिलके जहां खायेंगे वहीं फैंक देंगे इससे सम्पूर्ण वातावरण में गन्दगी फैलती है। कहते है ईश्वर स्वच्छता को प्यार करता है फिर पढ़े लिखे लोग अपनी सफाई अपने घर की सफाई और मौहल्ले की सफाई की ओर क्यों ध्यान नहीं देते है जबकि हम लेाग स्वच्छता की महिमा को समझते है। हम लोग अनुशासनहीनता और आलसी है। पढ़े लिखें लोग हमेशा चुस्त और अनुशासित होते हैं। पढ़े लिखे लोगों की बुद्धि संकुचित हो ये नई बात नहीं। आप बस या ट्रेन में दो आदमियों की जगह घेर कर बेठेगें चाहे, दूसरे यात्रियों को असुविधा ही हो। बस या ट्रेन में गंदगी फैलाना या उनकी सीटों को नष्ट करना ये आम बातें है। सिगरेट व बीड़ी पीना जैसे उनका अधिकार है चाहे उसके धंुए से दूसरों को तकलीफ भी होती हो। अच्छा नागरिक अपने स्वार्थ को त्याग कर दूसरों की तकलीफों की ओर ध्यान देता है तथा सभी नागरिकों से हिलमिल कर सद्व्यवहार से वातावरण को उल्लासमय बनायेगा। सरकारी वाहनों को अपना वाहन समझकर उन्हें न तो नष्ट करेगें और न गंदा ही करेगें।

 


हमारे देश की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। इसके विपरीत हमारे देश की राष्ट्रीय आय में इतनी वृद्धि नहीं हुई है कि बढ़ती जनसंख्या की सुविधाओं का पूरा पूरा ध्यान रख सके। ऐसी परिस्थिति में हमारे देश के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य हो जाता है कि ‘‘हम दो हमारे दो‘‘ के नियम का पालन करें - खास कर पढे़ लिखे लोगों को ज्यादा बच्चे पैदा करते देखा है। कुछ पढ़े लिखे लोग तो लड़के की चाह में सात लड़कियां पैदा कर चुके है। ये लोग अपने स्वार्थ में अपना जीवन बर्बाद तो कर ही रहे हैं, लेकिन देश की आर्थिक स्थिति को भी कमजोर कर रहे हैं। ये लोग पढ़ लिख कर देश की उन्नति में बाधा डाल रहे है। सभी लोग भारत में दो बच्चों के नियम का पालन करें तो समस्या का समाधान अवश्य होगा।
पढ़े लिखे लोग नौकरियां लेकर देश की उन्नति की बातें साचेगें तो शिक्षा का उद्देश्य पूरा होगा, लेकिन आजकल तो सरकार से ज्यादा तनख्वाह लेने के लिए ‘‘हड़ताल‘‘ करंगें या अफसर के कार्यालय में ‘‘धरना‘‘ देगें, जिससे कार्यालय के कार्य में हरजाना हो। ‘‘गाड़ी रोको‘‘, ‘‘सत्याग्रह‘‘, ‘‘भूख हड़ताल‘‘ और ‘‘रास्ता रोको‘‘ जैसे कार्य करके देश की सरकार को बरबाद करने का प्रयत्न करेगें। क्या ये पढ़े लिखे यह बात नहीं जानते कि इन कार्यो में देश की उन्नति में बाधा पहुंचाती है। ये पढ़े लिखे लोग राष्ट्रीय भावना की कमी है और स्वार्थ की भावना के आधार पर तोड फोड़ करते है। ऐसी परिस्थिति में समालोचना से काम नहीं बनता। पढ़े लिखे लोगों को अपने अफसरों से बातचीत करके समस्याओं का हल निकालना चाहिए।
आजकल शिक्षा एक व्यापार बन गया है। गली गली में मंहगी फीस वाली अंग्रेजी माध्यम वाली स्कूलों की दुकाने खुली हुई है जहां सिर्फ शिक्षा बिकती है। इन दुकानों में छात्रों में व्यवहार परिवर्तन की आशा करना ठीक नहीं है। शिक्षा वस्तुओं की तरह इन दुकानों से खरीदी नहीं जा सकती। इसका प्रत्यक्ष फल समाज और देश के विभिन्न क्षेत्रों में दिखाई दे रहा है। ऐसा लगता है कि हमारे स्वतंत्र भारत में पढ़े लिखे लोग नौकरी और मजदूरी करके पेट पाल रहे हैं और कम पढ़े लिखे लोग राजनैतिक नेता बनकर या व्यापारी बनकर हमारे देश की सरकार चला रहे हैं। सदियों से हम गुलाम रहे और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमें राजनैतिक स्वतंत्रता तो मिली लेकिन हमारी बुद्धि अभी तक संकुचित है और हम अपने स्वार्थ की ही सोचते है। अच्छे नागरिकों को इस स्वार्थ की भावना को त्याग कर राष्ट्रीय भावना को जागृत करना होगा जिसके द्वारा देश का विकास हो और भारत का नाम दुनिया के विकासशील देशों में आने लगे।

 

 


सत्यनारायण पंवार

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ