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बू.फे डिनर

 

(सत्यनारायण पंवार)

 


आजकल सभी शादियों और अन्य उत्सवों के प्रीतिभोज में बू.फे डिनर (ठनििमज क्पददमत) की व्यवस्था होती है जिसमें अतिथि अपना भोजन स्वंय अपने लिए परोसते है। हमारे देश में पाश्चात्य सभ्यता की इस व्यवस्था को इसलिए अपनाया है कि परोसने वालों की आवश्यकता नहीं रहती। दूसरा अतिथि अपना मनपसन्द एवं आवश्कतानुसार भोजन स्वयं अपने लिए परोस सकते हैं जिससे खाना बरबादी कम होती है। पहिले प्रीतिभोज में अतिथि बैठकर भोजन करते थे और परोसने वाले उन्हें भोजन करने में सहायता देते थे। अब सभी लोग इस पुरानी व्यवस्था को नहीं अपनाते और बु.फे डिनर की व्यवस्था करते है।

 


बु.फे डिनर के कुछ नियम होते है जिससे अनुशासन बना रहता है लेकिन हमारे देश इस व्यवस्था को अपना तो लिया लेकिन नियमों का पालन नहीं करते और अनुशासनहीनता का वातावरण दिखाई देता है और बु.फे डिनर में भोजन के विभिन्न मदों को टेबल पर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर गर्म रखने वाले स्टोवों पर सजा कर रखा जाता है। अतिथियों को चाहिए कि वे टेबल के एक सिरे से पंक्ति बनाकर अपना-अपना भोजन परोसते हुए एक आईटम से दूसरे आईटम को लेते हुए आगे बढते रहना चाहिए, जिससे पीछे वाले अतिथि को आराम से परोसने का समय मिले। पंक्तिबद्ध अतिथियों को आराम से अपना भोजन परोसने का समय मिलता है और अुनशासन बना रहता है।

 


हमारे यहाँ विवाहों और उत्सवों में बु.फे डिनर में सभी अतिथि पंक्तिबद्ध नहीं खडे होते। सभी अतिथि अपना-अपना भोजन परोसने के लिए एक के ऊपर दूसरा आइटमों के ऊपर खड़ा हो जाता है। भोजन के सभी आइटमों पर भीड़ जमा हो जाती है। कभी-कभी तो इतनी भीड़ जमा हो जाती है कि भोजन लेते हुए एक दूसरे के कपड़े तक खराब हो जाते है। अनुशासन एवं शरीफ अतिथियों को तो भोजन लेने के लिए घंटों तक इंतजार करना पड़ता है। इस भीड़ के धक्कों में औरतें और बच्चों को अपना भोजन परोसने में दिक्कत आती है। वातावरण अनुशासनहीन बन जाता है।


पहिले अतिथि एक जगह बैठकर परोसा हुआ भोजन करते थे जिससे वे एक दूसरे अतिथि से भोजन करते हुए मिल नही सकते थे, लेकिन बू.फे डिनर में अतिथि अपनी परोसी हुई प्लेट को हाथ में लेकर और भोजन करते हुए अपने मन चाहे दोस्त, रिश्तेदार और मेहमानों से मिल सकते हैं और बातचीत भी कर सकते हंै। बू.फे डिनर में यह सबसे उत्तम बात है कि भोजन करते करते मिलनसार जीवन का आनन्द भी उठा सकते है।

 


पहिले अतिथि उत्सवों बैठकर भोजन करते थे और वे आज भी उसकी व्यवस्था को अपनाना चाहते है, इसलिए बू.फे डिनर में अपना भोजन परोसकर आंगन में बैठकर खाते है खासकर स्त्रियां, जो घंूघट निकालती है वे घूंघट के साथ खड़े रहकर भोजन करने में तकलीफ महसूस करती हैं। इतना ही नहीं बच्चे घरों में बैठकर भोजन करते है तो उन्हें बैठकर भोजन करना ही अच्छा लगता है। ऐसे अतिथियों के लिए या तो नीचे बैठने या कुर्सियाँ पर बैठकर खाने की व्यवस्था होनी चाहिए अन्यथा मिट्टी पर बैठकर भोजन नहीं किया जा सकता।

 


अतिथियों को अपना भोजन स्वंय अपने लिए परोसकर भोजन के विभिन्न मदों से सजी टेबल से दूर जा कर दोस्तों, रिश्तेदारों और मेंहमानों के झूण्ड में बातचीत करनी चाहिए। लेकिन हमारे उत्सवों में अतिथि भोजन के मदों से सजी टेबल के पास ही खड़े रहते जिससे उन्हें दूसरी बार भोजन लेने में दूर से आना न पड़े। इस तरह के अतिथियों की भीड़ मदों से सजी भोजन की टेबल के पास इकठ्ठी हो जाती है और दूसरे अतिथियों को टेबल से भोजन लेने जाने में दिक्कत पैदा होती है।

 


हमने बू.फे डिनर की व्यवस्था को सभी उत्सवों में अपना तो लिया है लेकिन पाश्चात्य सभ्यता के बू.फे डिनर के नियमों नहीं अपनाया इसलिए अतिथियों को असुविधा होती हैं। इतना ही नहीं बू फे डिनर पाश्चात्य सभ्यता के अनूकुल है क्यांेकि वहाँ सभी शिक्षित और अनुशाससित है और औरतें घूंघट में नहीं रहती। दोस्त रिश्तेदार और मेहमानों को स्वतंत्रता होती है कि वे भोजन के आनन्द के साथ-साथ सामाजिक स्नेह मिलन का आनन्द भी उठा सके। बू.फे डिनर की व्यवस्था को अपनाने के साथ हमें भी उनकी तरह स्वतंत्र और अनुशासित रहने की आवश्यकता है जिससे विवाह और उत्सवों में बू.फे डिनर का सम्पूर्ण आनन्द उठाया जा सके।

 

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