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दिखावा छोड़ें

 

(सत्यनारायण पंवार)

 


आजकल लोगों में बनावटी दिखावे की सनक इतनी बढ़ गई है कि वे अपने को दिवालिया तक बना लेते है। कुछ लोगों को अपने रहन-सहन, बोल-चाल और पहिनावे से अपने को इतना धनी और प्रभावशाली दिखलाते है जितना वे होते नहीं । एक थोथी वितृष्णा उन्हें कर्ज लेने के लिए प्रेरित करती रहती है क्योंकि वे खुशहाल और चिन्तामुक्त दिखना चाहते हैं। क्या ऐसे लोगों को औकात के बाहर जाकर खर्च करने से सचमुच में सम्पन्नता, खुशी और बेफ्रिक्री मिलती है। कदपि नहीं। किसी ने ठीक ही कहा है- ‘‘जाते पांव पसारिये, तांती लम्बी ठौर ’’।

 


आजकल अभिभावक अपना पेट काटकर या कर्ज लेकर अपने बच्चों को मंहगी अंग्रेजी माध्यम वाली स्कूलों में भर्ती कराता हैं चाहे उनके बच्चों को अंगे्रजी माध्यम द्वारा शिक्षा हासिल करने में तकलीफ ही हो। सभी अभिभावक अपने नाकाबिल बच्चोें को डाक्टर, इंजिनियर या आई0 ए0 एस0 बनाने के लिए कर्ज लेकर पैसा खर्च करते है जिससे उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा बनी रहे, चाहे उनके नाकाबिल बच्चे फैल होकर वापिस ही लौट जाय। लेकिन सभी लोग होड़ा होड़ गोड़ा फोड़ने में लगे हुए हैं।

 


आजकल हमारे देश में दिखावे की शान और बनावटी इज्जत का बोल बाला घर-घर में दिखाई दे रहा है। कुछ लोग बच्चों की सगाई, शादी और अन्य उत्सवों में अन्धाधुंध खर्च करते है चाहे उन्हें कर्ज ही क्यों न लेना पड़े। झूठी शान शौकत का दिखावा, वस्त्रों, आभूषणों और रहन सहन, शादियों में धन का प्रदर्शन उन्हें भले ही दिवालिया बना दे। कुछ लोग प्रतिस्पर्धा में इतने मशगुल हो जाते है कि उनके परिवार की दुर्गति हो जाती है। आडम्बर,प्रदर्षन एवं दिखावे की प्रवर्ति से सामाजिक परम्पराएं एवं जीवन इतना बोजिल होता जा रहा है कि सामान्य व्यक्ति की आर्थिक रीढ की हडडी टूटती जा रही है। विश्व कवि रविन्द्रनाथ टैगोर ने कहा है- ‘‘नकल करके वस्त्रों का आयोजन और चेष्टा में लगे रहने से बढकर मूर्खतापूर्ण कार्य मुझे और कोई नहीं दिखाई देता।’’

 


केवल किसी वस्तु को पाने की इच्छा, क्योंकि वह दूसरे धनी लोगांे के पास है, समझदारी नहीं। दूसरों को नकल करके अपने आप को बरबाद मत कीजिये। बहुत से लोग धनी लोगों की नकल करके अपने-आपको संकट में डाल लेते हैं। वे कर्जे के चंगुल में ऐसे फंस जाते हैं कि वहां से उनको छुटकारा मिलना मुश्किल हो जाता है। कभी-कभी कुछ लोग अपने प्रदर्शन से दूसरों को नीचा दिखाना चाहते है लेकिन वास्तव में वे अपने आपको ठग रहे है और अपने परिवार को बर्बाद कर रहे हैं। अगर हम सच्चे और खरे है तो हमें इस बात की परवाह नहीं करनी चाहिए के समाज के लोग मुझे क्या कहेगंे? किसी ने ठीक ही कहा है- ‘‘कुछ तो लेाग कहेंगें - लोगों का काम है कहना’’। झूठी सामाजिक प्रतिष्ठा के डर से पहिले अपनी औकात को पहिचाने।

 


कीमती गहने, कपड़े, कार, नौकर चाकर रखने से कोई बड़ा आदमी नहीं बनता। बड़ा आदमी बनने के लिए मानव को अच्छे कर्म करने पड़ते है और इंद्रियों को वस में करके अच्छे गुणों को प्राप्त करना पड़ता है जैसे-विवेकानन्द महात्मागांधी, महावीर, बुद्धा इत्यादि। ये सभी महान् पुरूष बनावट दिखावट से दूर थे। सरलता और संतोष ही उनकी सम्पत्ति थी।
अपने आप को लोगों के सामने बनावटी ढं़ग से दिखावा करने से हम अपनी दृष्टि में अवश्य ही गिर जाते हैं क्योंकि-

 

‘‘सच्चाई छिप नहीं सकती बनावट के उसुलों से।
खूशबू आ नहीं सकती कभी, कागज के फूलों से।।

 


झूठा जीवन अपनाने से हमारी वास्तविकता हमारी असलियत और हमारा चरित्र भ्रष्ट हो जाता है। इसलिए ईमानदारी, सादगी, संतोष और वास्तविकता में जीने का प्रयत्न करें जिससे आप भारतवर्ष के प्रतिष्ठित नागरिक बनकर अपने देश के विकास में अपना सम्पूर्ण सहयोग दे सके और अपने जीवन को सुखी बना सके। दिखावा करने वाले अपने आप को और परिवार को कष्ट में डाल देते हैं।

 


आजकल दिखावा करने के लिए मंहगे कपड़े, जूते और गहने पहिनना, महंगी होटलों में खाना खाने का रिवाज आम हो रहा है। इस अंधें-अनुकरण से पारीवारिक खर्चे बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे लोग कर्ज उतारने की चिन्ता से दुर्बल हो जाते है और बीमार पड़ जाते है। दिखावा करने वाले समाजवालों के डर से डरपोक भी हो जाते है। इतना ही नही ये लोग व्यर्थ के दिखावे और झूठे प्रदर्शन मे पड़कर इतने आत्म केन्द्रित हो जाते है कि वे अपने वृद्ध माता-पिता की ठीक से देखभाल नहीं करते।

 


हमें झूठी शान शौकत के लिए पैसा बर्बाद नहीं करना चाहिए। हो सके तो धन बचाना चाहिए। आपके परिवार और देश को आपके धन की कभी भी आवश्यकता पड़ सकती है। आप दिखावे के जीवन से बचें और अपने वास्तविक जीवन में जीये जिससे आपको सुख और शान्ति मिले। आप दिखावा छोड़कर परोपकार करें जिससे आपका व्यक्तित्व निखरे और आप समाज में पहिचाने जाये।

 

 


सत्यनारायण पंवार

 

 

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