(सत्यनारायण पंवार)
पुराने जमाने में, जब टी.वी. और अन्य मनोरंजन के साधन नहीं थे, तो लोग एक दूसरे रिश्तेदारों और दोस्तों के घर मिलने जाते थे। आजकल दूरसंचार की सुविधाओं के कारण यह प्रथा कम होती जा रही है। आजकल लोगों के निवास स्थान भी दूर-दूर है लेकिन फिर भी एक दूसरे से मिलनें की इच्छा पूरी करने के लिए एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं। प्रत्येक मानव के लिए उपरोक्त प्रथा आवश्यक है क्योंकि इस प्रथा के द्वारा मानव अपने सामाजिक स्वभाव को विकसित करता है और सामाजिक जीवन में भाग लेने के योग्य बनता है।
अगर दो परिवारों के लोग बैठकर आपस में बातचीत करते है तो दोनों परिवारों के बीच प्रेम और सहयोग की भावना पनपती है। अपने-अपने अनुभवों की बातें करने से एक दूसरे को सीखने का मौका मिलता है जैसे गृहणियाँ आपस में नये व्यजंन बनाना सीखती है। कभी-कभी आपस में हंसी मजाक करने से सभी लोगों का मनोरंजन होता है। स्वस्थ जीवन के लिए पारिवारिक स्नेह मिलन आवश्यक है। अधिकतर देखा गया है कि लोग अपने-अपने राजनैतिक, सामाजिक और स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं पर विचार विमर्श करते है जिससे सभी लोग लाभान्वित होते हैं। कभी-कभी ये लोग आपस में मिलकर देश या विदेशों की यात्राएँ, सिनेमा या कोई प्रदर्शनी एक साथ देखने का प्रोग्राम बनाते हैं जिससे दोनों परिवारों के बीच में सम्बन्ध मजबूत होते हैं। पहले जमाने में जब चाय पिलाने का रिवाज नहीं था तो खाना खाते थे लेकिन आजकल चाय, नमकीन और बिस्किट खिलाते हैं। कुछ लोेग सर्दियों में चाय और गर्मियों में ठंडा शरबत भी पिलाते हैं। चाय की चुस्कियों के साथ-साथ बातचीत करना अच्छा भी लगता है।
उपरोक्त दो परिवारों के सामाजिक मिलन के कुछ नियम है जिसका अनुसरण करना चाहिए, जिससे दोनों परिवार के सदस्यों में मनमुटाव न हो -
1. एक परिवार को दूसरे परिवार के घर सामाजिक मिलन की आवृŸिा 15 दिन या एक महीने में एक बार से अधिक नहीं होनी चाहिए। अगर एक परिवार दूसरे परिवार के घर रोज या एक दो दिन बाद बैठ जाय तो दूसरा परिवार पहले परिवार को सहन नहीं कर पायेगा और सोचेगा कि वे निकम्मे ओर मंगते लोग है।
2. उपरोक्त मिलन का समय आधा घंटे से लेकर एक घंटे से अधिक नहीं होना चाहिए क्योंकि मेजबान परिवार के सदस्यों को भी अपने-अपने रोज के कार्यों को करने के लिए समय चाहिए। अगर मेहमान परिवार मेजबान परिवार के घर 3 या 4 घंटे तक बैठे रहेगें तो मेजबान परिवार के सदस्यों को उबाने लगेगें और उनके घरेलू कार्यो को करने में बाधा बन जायेगें।
3. सामाजिक मिलन में मेहमान परिवार चाहे मेजबान परिवार का उच्च अधिकारी या कनिष्ठ अधिकारी हो तो पद की गरिमा भुलाकर घर में दोस्त की तरह आदर और सम्मान का व्यवहार करना चाहिए। जिससे दोनों परिवार आपसी मिलन का आनन्द उठा सके।
4. सामाजिक मिलन में दोनों परिवार के सदस्यों को बोलने में शिष्टाचार का ध्यान रखना चाहिए। किसी भी सदस्य को ऐसी बात नहीं बोलनी चाहिए जो दूसरे सदस्य को बुरी या व्यंग्य कसने जैसी लगे। प्रत्येक सदस्य को धीमी आवाज और मीठी वाणी बोलनी चाहिए जिससे मिलन में सौहार्द बना रहे।
5. कुछ लोग खासकर सैना अधिकारियों के सामाजिक मिलन में चाय या ठंडे पेय की जगह शराब पिलाने की प्रथा है। शराब पीने वाले सदस्यों को अपनी सीमा को ध्यान में रखकर शराब पीनी चाहिए, जिससे वे अपनी मर्यादा का उल्लंघन न करंें।
6. मेहमान परिवार को सामाजिक मिलन में मेजबान परिवार जो भी व्यंजन परोसे उनकी बढ़ाई करें और अपने पसन्द के व्यंजन की फरमाईश न करें जिससे मेजबान परिवार को तकलीफ हो।
7. मेहमान परिवार और मेजबान परिवार के बीच में दोस्ती, भाईचारा और विश्वास होना चाहिए। दोनो परिवार के सदस्यों में से किसी एक सदस्य को दूसरे परिवार के सदस्य के साथ विश्वासघात यानि नियत खराब नहीं करनी चाहिए। ऐसी अश्लील घटनाएं कभी-कभी समाचार पत्रों में पढ़ने को मिलती है।
8. मेहमान परिवार के सदस्यों में अकेले आदमी या अकेली औरत या अकेला आदमी हो तो नहीं जाना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से आस-पड़ौस के लोग के बीच अवैध रिश्ते का शक कर सकते है।
अगर प्रत्येक मेहमान परिवार और मेजबान परिवार उपरोक्त नियमों का पालन करेगें तो दोनों परिवारों के अल्पकालिक स्नेह मिलन का दोनों परिवार आनन्द उठा सकते हैं अन्यथा किसी एक नियम का अनुसरण नहीं करने पर बिन बुलाये मेहमान का वातावरण पैदा हो जायेगा। प्रत्येक मानव जीवन की हर डगर पर असूलों पर चलकर और अनुशासन में रहकर ही अपने जीवन में चार चाँद लगा सकता है और एक प्रतिष्ठित नागरिक बन जाता है।
(सत्यनारायण पंवार)
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