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कहिये वचन बिचारि के

 

सत्यनारायण पंवार

 

 

हमारे सम्पूर्ण जीवन में सुख-दुुःख का समावेश होता हैं, लेकिन मानव अपने सारे कार्यो के द्वारा अपने जीवन को खुशियों से भर देने का प्रयत्न करता है। वह कितना सुखी रह पाता हैं वह उसकी कोशिश और उसकी तकदीर पर निर्भर करता हैं। अधिकतर लोग पार्टियों में आपस में हंसी मजाक करके अपना मनोरंजन करते है। एक दूसरे की मजाक करना अच्छी बात हैं लेकिन मजाक को सहन करना दूसरी बात हैं। हंसी मजाक से लोगों के मुंह पर हंसी के फव्वारे छूटने लगते हैं। लोगों की मुंह की मुस्कान उनके जीवन में रंग भर देती है।

 


हंसी, खुशी और मस्ती जीवन की खेती में पानी का काम करती हैं। इसलिए लोग हंसी, खुशी और मस्ती को इजाफा देने के लिए मजाक करते हैं, चुटकुले सुनाते हैं और जोकर की तरह हरकतें करते हैं। संघर्षमय जीवन की बीमारी को झेलने के लिए हंसी, खुशी और मस्ती दवाई का काम करती हैं। कुछ बड़े शहरों में ‘‘हंसिये और हंसायिये‘‘ क्लब खुले हुये हैं जिसमें उनके मेम्बर खुली हवा में मिलकर ठहाके लगाते हैं जिसके उनके फेफड़ों को शुद्ध हवा मिलती हैं। हंसी मजाक करने वाले और सुनने वालों के दिल और दिमाग पवित्र होने चाहिए जिससे मजाक व्यंग का रूप धारण न करें। मजाक को व्यंग के बाण समझने वाला बाण का दुःख सहन नहीं कर सकता और वह सुखी होने की बजाय दुःखी हो जायेगा।

 


मजाक करना भी एक कला हैं। मजाक ऐसा हो जिससे उपस्थित समुदाय में से किसी एक व्यक्ति विशेष पर आक्षेप न हो। मजाक के द्धारा जन-समुदाय का मनोरंजन हो सभी लोग ठहाका मार कर हंसे और आनन्दमय वातावरण का समावेश हो। जिससे सबकी उम्र में वजीफा हो। हंसना जीवन का प्रकाश हैं।

 


एक अच्छा खिलाड़ी किसी खेल में हार जाता हैं तो हार को झेलने की हिम्मत होनी चाहिए। उसी प्रकार लोगों को मजाक को झेलने वालेे को भी उसे सहन करने की क्षमता होनी चाहिए लेकिन यह बात हमेशा नहीं हेाती और कभी-कभी लोग मजाक सहन नहीं कर सकते और लड़ने पर उतारू हो जाते हैं या फिर मजाक को संवेदना बनाकर अपने जीवन को बरबाद कर देते हैं। ‘‘क‘‘ ने अपने दोस्त ‘‘ख‘‘ की शादी में मियां बीबी को देखकर यह कह दिया कि ‘‘ अरे यार तुमने भी क्या बीबी ढूंढी जैसे अमिताभ बच्चन ने जया भादूरी को‘‘ लेकिन ‘‘ख‘‘ ने इस मजाक को सहन नहीं कर सका और अपने बीबी के कद को लेकर दुःखी रहने लगा। उससे लड़ना झगड़ना शुरू कर दिया। दोनों के बीच में रोजाना झगड़े होते रहते और दोनों का जीना दूभर हो गया। कभी-कभी औरतें भी इस बात को बुरा मानकर ‘‘क‘‘ से बदला लेने की कोशिश में लग जाती है।

 


मजाक करने से लोगों का मनोरंजन हो लेकिन व्यंग्य करना दूसरी बात हैं क्योंकि इसमें किसी की व्यक्तिगत कमी को ध्यान में रखकर बात कही जाती हैं। कुछ लोगों में व्यंग्य सहन की शक्ति होती हैं लेकिन कुछ लोग उसे ताना समझकर दिल में घाव पैदा कर लेते हैं और धीरे-धीरे घाव बढ़कर नासूर का रूप धारण कर लेता हैं। इतना ही नहीं लोगों की मजाक उनके लिए नासूर बन कर उनका जीवन और दूसरों की जीवन नष्ट कर देती हैं।
ऐसे मर्द जो लोगों के व्यंग्य को अहं पर ठेस समझकर विवाह-विच्छेद तक पहुंच जाते हैं, मैं उन्हें बेवकूफ समझता हॅूं। लोगों की बातें सुनों लेकिन करो वही जो अपना पवित्र मन कहे।

 


‘‘हम सब को लोग कहेंगे- लोगों का काम हैं कहना‘‘ इसी बात को ध्यान में रखते हुए अपना कर्तव्य करों, झूठे अहं को त्याग दो जिससे हम सब का जीवन शान्ति और सुखमय हो।

 


कबीर दास जी हिदायत की थी-
ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करें, आपहुं शीतल होय।।
जाहिर हैं मजाक नहीं, मजाक करने का तरीका महत्वपूर्ण हैं। इसलिए अंग्रेजी में कहावत हैः-
‘‘व्हाट टू से इज नोट इम्पोर्टेन्ट
बट हाऊ यू से इज इम्पोर्टेन्ट‘‘

 


वास्तव में सुख, शान्ति, स्नेह, प्रसाद एवं सौहार्दपूर्ण जीवन यापन के लिए जरूरी हैं कि सदैव अपनी मजाक (बात) को बड़ी ही शालीनता, सहजता एवं उचित ढंग से (यानि किसी पर कटाक्ष न हो) कही जाये, क्योंकि वाणी हमारे लिए ईश्वर का अनमोल उपहार हैं। जहाॅं बोलने से किसी को हानि हो और सत्य की रक्षा न हो तो चुप रहना ही उचित है। क्या नहीं बोलना?, कब नहीं बोलना?, और कहाॅं नहीं बोलना आदि ऐसे प्रश्न है जो बोलने वाले को ध्यान में रखना चाहिए यानि जबान सम्भाल कर बोले। मनुष्य को कभी ऐसे शब्द नहीं बोलने चाहिए कि उसको बाद में पछताना पड़े। सुनने वाले मनुष्य को केवल किसी के कहे शब्दों को ही न पकड़ ले बल्कि कहने वाले की मंशा और भावना को समझें तथा अपनी बुद्धि काम ले यानि ‘‘कहिए बचन बिचारि, करिए मति अनुहारि‘‘

 


(सत्यनारायण पंवार)

 

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